क्या भक्ति से प्रभु-दर्शन संभव हैं?

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शंका

आचार्य समन्तभद्र स्वामी भक्ति मार्ग के महान योगी थे। उन्होंने अपने इस योग मार्ग से स्वयंभू स्रोत की रचना की और उनका भस्मक व्याधि रोग दूर हुआ। लोग कहते हैं कि बनारस में चन्द्रप्रभु भगवान प्रकट हुए। तो भगवान! हमें भी कोई ऐसी उत्कृष्ट भक्ति और भक्ति योग का मार्गदर्शन करें कि हम अपना कैसे कल्याण करें! और क्या यह सम्भव है कि हम भी किसी तीर्थंकर भगवान के ऐसी उत्कृष्ट भक्ति के द्वारा दर्शन कर सकें?

समाधान

सम्भव है, पर समन्तभद्र जैसों के लिए सम्भव है, बाकी के लिए नहीं! समन्तभद्र कौन? जिसके अन्दर सब तरफ से भद्रता प्रकट होती है उसी के हृदय में भगवान प्रकट होते हैं, हर किसी के लिए नहीं होते। और जब तक भगवन प्रकट नहीं होते तब तक भक्ति नहीं; भक्ति एक बहुत उच्च आराधना है। भक्ति को केवल शाब्दिक अभिव्यक्ति का साधन मत समझना। भगवान के समक्ष शब्दों को प्रकट करके उनका गुणगान कर देना ही भक्ति नहीं है; भक्ति का असली अर्थ है भगवान के सामीप्य का एहसास! भक्ति परम प्रेम रूप है, अमृत रूप है और जिसके मन में भक्ति जग जाती है उसकी स्थिति अलग हो जाती है। भगवान में ही लीन हो जाना और उसके विरोधी से अपने आप को दूर कर देना। 

समन्तभद्र महाराज बहुत उच्च भूमिका में पहुँचे हुए थे, उन्होंने अपनी भस्मक व्याधि को शान्त करने के लिए भक्ति नहीं की, व्याधि शान्त करने के बाद भक्ति की। भक्ति तो उनके इतर में थी, ये चमत्कार, जो कुछ भी घटित हुआ, वह व्याधि के उपशमन के बाद हुआ। इस तरह की भूमिका जिसके हृदय में घट जाती है उसका ही जीवन वैसा हो पता है।

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