जैनागम की दृष्टि से रक्तदान सही है?

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शंका

अभयदान और जीवनदान में क्या अन्तर है? क्या रक्त दान आगम के हिसाब से सही है?

समाधान

अभयदान और जीवनदान! अभयदान का मतलब है कि किसी भी प्राणी को मारना नहीं, उसे मरने से बचाना; और जीवनदान है कि मरते को बचा लेना। अभयदान थोड़ा सा व्यापक है, उसमें किसी की हिंसा नहीं करना और जीवनदान में यदि किसी की मरणासन्न अवस्था है, तो उस घड़ी में उसके सहायक बनकर उसके जीवन को बचा लेना। ऐसे देखें तो ये बहुत सूक्ष्म अन्तर है। एक दूसरे के पर्यायवाची की तरह भी इनको देखा जा सकता है 

जहाँ तक रक्तदान और अंगदान का सवाल है, रक्तदान का जैन धर्म की दृष्टि से, जैन धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों की दृष्टि से कहीं से भी निषेध करने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि आज एक व्यक्ति किसी को रक्तदान देता है, तो किसी के जीवन की रक्षा होती है, उसके प्राणों की रक्षा होती है और प्राणों की रक्षा जीवदया का एक बहुत बड़ा अंग है।

‘जीवाणं रख्खणं धम्मो’ ऐसा हमारे आचार्यों ने कहा है कि जीवों की रक्षा करना हमारा धर्म है।

रक्त दान का पुराने समय में कुछ जगह तो निषेध इसलिए किया गया कि पुराने समय में इसकी जो प्रक्रिया थी, वह बहुत अच्छी नहीं थी। इनके रख रखाव की व्यवस्थाएँ नहीं थीं। अंगों के छेदन-भेदन की क्रियाएँ भी बड़ी जटिल थीं। शायद इसलिए उसका निषेध किया गया हो लेकिन आज जो रक्त का दान किया जाता है उसको सही ढंग से देखभाल कर रखा जाता है और पहले से ब्लड ग्रुप चैक किया जाता है और blood cells जब तक जीवित होते हैं तभी एक दूसरे के काम आते हैं। तो यदि किसी को रक्तदान करना है, तो इसका मतलब यही समझिए कि जैसे आपके शरीर की एक धमनी से दूसरी धमनी में ब्लड का सर्कुलेशन हो रहा है वैसे ही एक शरीर से दूसरे शरीर में transfer होकर वह circulate हो रहा है। इसका बड़ा व्यावहारिक लाभ है 

कुछ त्यागी वर्ग आज इसका निषेध करने लगे हैं। लेकिन अगर इसका निषेध कर लें तो जैनियों की छवि बड़ी खराब होगी। जैन धर्म को लोग बड़ा विकृत धर्म कहेंगे और जैनियों को बड़ा क्रूर कहेंगे। फिर जब जैनियों को रक्त की जरूरत होगी तो कोई रक्त नहीं देगा। जबकि ऐसा है नहीं। एक व्यक्ति की बाईपास सर्जरी हो रही है, उसको रक्त की आवश्यकता है जब रक्त मिलता है, तो उसका जीवन बचता है या और कोई समस्या है तब भी रक्त की आवश्यकता होती है, तो इसका कहीं से निषेध नहीं। 

रहा सवाल आगम का, मैंने एक बात पहले भी कही थी, आगम भी इसका समर्थन करता है जो लोग इन सब बातों का निषेध करते हैं, मुझे यह पता नहीं वो क्या समझ कर करते हैं हमें धर्म की सही व्याख्या करनी चाहिए।

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