सम्यग्दृष्टि जीव कितने भव में मोक्ष जा सकता है?

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शंका

एक सम्यक् दृष्टि जीव अधिक से अधिक कितने भव में मोक्ष जा सकता है? उसे कैसे पता चलेगा कि वह सम्यक् दर्शन को प्राप्त कर चुका है? क्योंकि इस पंचम काल में केवली भगवान का समागम तो हमें प्राप्त होता नहीं है।

समाधान

एक सम्यक् दृष्टि के मोक्ष की बात आपने की तो, सम्यक् दृष्टि तो अर्द्ध-पुद्गल परावर्तन काल तक संसार में रह सकता है। उसमें असंख्यात-संसख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी परिवर्तित हो जाती हैं। बहुत लम्बी कालावधि है। सम्यक् दर्शन को प्राप्त करने के बाद मोक्ष मार्ग खुलता है, पर केवल सम्यक् दर्शन से मोक्ष नहीं मिलता है। जब सम्यक्त्व के साथ रत्नत्रय होता है, तब मुक्ति की प्राप्ति होती है। इसलिए सम्यक् दृष्टि असंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक संसार में भटक सकता है। लेकिन जो मोक्ष मार्गीय मुनिराज हैं, वे अगर भाव लिंग के साथ मुनि व्रत को अंगीकार कर लें, तो ३२ भव से अधिक संसार में नहीं भटक सकते हैं। इसलिए रत्नत्रय की साधना का बहुत महत्त्व है। उसे समझना चाहिए।

रत्नत्रय के इस महात्म्य के अन्तर्गत विशेष महिमा की बात सल्लेखना की साधना की है। यदि कोई व्यक्ति एक बार निर्दोष सल्लेखना धारण कर ले, और सल्लेखना पूर्वक देह का परित्याग करें तो वो ज़्यादा से ज़्यादा ७-८ भव में मोक्ष प्राप्त कर सकता है। इसलिए सम्यक्त्व की भावना भाओ, पर सम्यक्त्व को ही अपने जीवन का साध्य मत बनाओ। भेद विज्ञान के बाद रत्नत्रय है, और इस रत्नत्रय से ही बेड़ा पार होगा। भेद विज्ञान की प्रगाढ़ अनुभूति कब होगी? जब हम अपनी आत्मा में डूबने की सामर्थ्य जुटाएँगे, सल्लेखना जैसी साधना को अपनायेंगे, तो सात-आठ भव में बेड़ा पार हो जायेगा।

क्षायिक सम्यक्दृष्टि के लिए अनेक भव नहीं होते है। क्षायिक सम्यक् दृष्टि जीव अगर संसार में अधिकतम रहे, तो आठ वर्ष अन्तर्मुहूर्त कम, दो पूर्व कोटि अधिक ३३ सागर मात्र तक इस संसार में रह सकता है। इससे ज़्यादा नहीं। वो यहाँ से स्वर्ग जायेगा, और स्वर्ग से मनुष्य होकर मोक्ष जायेगा। अगर कोई क्षायिक सम्यक्त्व के पूर्व मनुष्य आयु या देव आयु का बन्ध करता है, तो यहाँ से भोग भूमि जायेगा, भोग भूमि से स्वर्ग जायेगा, स्वर्ग से मनुष्य होगा और मोक्ष जायेगा। आयु नहीं बांधी है, तो यहाँ से सीधे देव पर्याय और देव पर्याय के बाद मनुष्य होकर मोक्ष जायेगा।

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