दर्शन-पूजन न मिले तो व्रत-उपवास कैसे करें?

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शंका

मैं Merchant Navy में हूँ। मैं और मेरी पत्नी जहाज पर रहते हैं। हम दशलक्षण पर्व मनाते हैं। उस समय हम सम्यक् दर्शन कैसे करें और व्रत और पूजा किस प्रकार करें?

समाधान

एक नीति है,  ”पूरा जाता देखिओ, आधा लिओ बचाए

न करने से अच्छा है, जितना कर लो उतना। अब आप जहाँ रहते हैं यदि दर्शन-पूजन सुलभ है, तो दर्शन पूजन करके आप अपना व्रत उपवास करें। यदि सुलभ नहीं है, तो दर्शन-पूजन के अभाव में व्रत न करें- ये ठीक नहीं है। दर्शन-पूजन करने के बाद व्रत उपवास करने का फल विशेष होता है- ये सही है। लेकिन दर्शन पूजन के अभाव में व्रत उपवास का कोई फल नहीं मिलना-ये बात सही नहीं है। जितना आपने किया उतना तो आपको फल मिलेगा ही। नहीं करने से तो अच्छा है। तो अब क्या करें? कुछ नहीं करें एक स्थान पर बैठें, भाव वन्दना करें और आज तो एडवांस टेक्नोलॉजी का युग है, आपको दर्शन पूजन नहीं हो रहा है। जिनको दर्शन पूजन हो रहा है उनके माध्यम से करें। 

मैं आपको सन् २०११ की हमारे चार्तुमास की बात बताता हूँ। पावापुरी में लाडू चढ़ाया गया, उसका लाईव टेलीकास्ट हुआ पूरे विश्व में, और मेरे पास समाचार आया कि वाशिंगटन, कनाडा, लिस्बन और अन्य कई देशों में लोगों ने टीवी के सामने लाडू चढ़ा दिया, कि हम भाव से पावापुर पहुंच गए हैं। मैं कहता हूँ कि निश्चित तौर पर उन्होंने पुण्य कमाया होगा। 

पुण्य का सम्बन्ध क्रिया से कम, भावों से ज़्यादा है। इसलिए मैं तो यही कहूँगा, कहीं भी रहो जो हमारे व्रत उपवास के दिन हैं, उनमें व्रत उपवास जरूर करो, और मन में ये भावना भाओ कि ‘हे भगवन! मेरा पुण्य ऐसा प्रगाढ़ हो, कि मैं व्रत उपवास भी करता चलूं, और जो व्रत उपवास में भी दर्शन पूजन छूट रहा है, वो दर्शन पूजन भी मुझे मिले।’ इसमें कोई बुराई नहीं। मैं उन सब लोगों को देश विदेश में ऐसे स्थान पर रहते हैं जहाँ दर्शन पूजन नहीं मिलते उनसे कहना चाहता हूँ व्रत उपवास आदि की क्रियाओं में कमी न करें। अपनी विशुद्धि को बढ़ाएँ, अपने भावों को जगाए, निश्चित आपको दर्शन वंदन का भी सौभाग्य मिल जाएगा।

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