मनुष्य पर्याय सर्वश्रेष्ठ होती है क्योंकि मनुष्य पर्याय में ही मोक्ष जाया जा सकता है। फिर हम विधान इत्यादि में इन्द्र-इन्द्राणी बनकर पूजा क्यों करते हैं? हम सामान्य मनुष्य बनकर पूजा क्यों नहीं करते हैं? क्या ऐसा कोई विधान शास्त्रों में है?
निश्चित रूप से मनुष्य पर्याय श्रेष्ठ है, पर देव पर्याय और मनुष्य पर्याय में एक मौलिक अन्तर है। भगवान की पूजा में इन्द्र-इन्द्राणी बना जाता है क्योंकि भगवान की आराधना करने की क्षमता देवों में सबसे अधिक होती है। देवता जितनी अच्छी आराधना कर सकते हैं उतनी मनुष्य नहीं। इसलिए पूजा-आराधना में देवों को प्रमुखता है। परन्तु जब साधना की बात आती है, तो साधना के क्षेत्र में मनुष्य सबसे आगे हैं क्योंकि साधना में मनुष्य का मुकाबला कोई नहीं कर सकता है। इसलिए देव पर्याय में आराधना की जाती है और मनुष्य पर्याय में साधना की जाती है।
हम जिनकी पूजा कर रहे हैं उन भगवान का रूप क्या है? मनुष्य का रूप है या देवता का? भगवान तो मनुष्य हैं, उनकी पूजा कौन कर रहा है? देवता। देवता होकर भी पूजा करना इस बात का द्योतक है कि मनुष्य से ऊँचा इस दुनिया में कोई नहीं है। अपनी आत्मसत्ता का उद्घाटन आत्म साधना के बल पर ही सम्भव है और वह केवल मनुष्य ही कर सकता है इसी कारण तीन लोक के सारे इन्द्र उनके चरणों में नतमस्तक होते हैं।
Leave a Reply