जब कण-कण में भगवान हैं तो मन्दिर क्यों जाएँ?

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शंका

जब कण-कण में भगवान हैं तो मन्दिर क्यों जाएँ?

समाधान

एक बार एक परिवार मेरे पास आया, उनके साथ एक बच्चा भी था, बच्चा MBA का स्टूडेंट था। परिवार के लोगों ने कहा -‘महाराज, इस से कहिए ये मन्दिर जाए।’ मैंने कुछ कहने की अपेक्षा जब उसकी तरफ देखा, तो उसने कहा- ‘महाराज! भगवान तो सब जगह हैं, हम मन्दिर क्यों जाएँ?’ हमने कहा- ‘बिल्कुल ठीक कहते हो! यह बताओ, हवा भी तो सब जगह है।’ बोले-‘हाँ, हवा भी सब जगह है।’ ‘हवा सब जगह है, ये बताओ, अपनी गाड़ी में हवा भरनी होती है, तो क्या करते हो? कहीं से भी हवा ले करके भर लेते हो?’ ‘नहीं महाराज जी! उसके लिए तो हमें फिलिंग स्टेशन में जाना पड़ता है।’ ‘फिलिंग स्टेशन में क्यों जाते हो?’ ‘क्योंकि महाराज जी, उसके लिए उतना प्रेशर चाहिए; सब जगह हवा है पर वैसा एयर प्रेशर नहीं है कि हम गाड़ी के टायर में भर सकें, उसके लिए फिलिंग स्टेशन में ही जाना पड़ता है।’ तो मैंने उसको इतना ही समझाया कि ‘भैया! मान लिया, भगवान सब जगह है। जैसे हवा सब जगह है, वैसे भगवान भी सब जगह है। लेकिन प्रेशर तो मन्दिर में ही मिलता है, जहाँ तुम अपने आप को रिचार्ज कर सको, हर जगह नहीं मिल सकता।’ 

इसलिए मन्दिर का काम मन्दिर में ही होगा, भगवान सब जगह है, लेकिन सब जगह हमें भगवान दिखते कहाँ है? मन्दिर में जाते ही हमारी भाव धारा बदल जाती है, यही तो मन्दिर के वातावरण का प्रभाव है। तो मन्दिर की तरफ हमारी दृष्टि हो, उसके महत्व को हम ठीक तरीके से समझ कर आत्मसात करें।

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