यदि आयु कर्म शेष है और १२ वर्ष की सल्लेखना काल पूर्ण होने को है तो बाकी समय कैसे व्यतीत करे?
भगवती आराधना में एक प्रसंग है कि यदि निर्यापक की उपलब्धता न हो, तो लम्बे समय की सल्लेखना ली जाये। परन्तु कुशल निर्यापक का सद्भाव होने पर भी 12 वर्ष की सल्लेखना लेने पर उसे महान असंयम का दोष आता है। इस प्रकार से शास्त्र के विधानानुसार आज के युग में 12 वर्ष की सल्लेखना लेना उचित नहीं है।
परम पूज्य गुरु देव इस बात से कभी सहमत नहीं होते कि 12 वर्ष की सल्लेखना लो। एक, दो मुनिराजों और आचार्यों की सल्लेखना इस तरह हुई, तब उन्होंने चर्चा में कहा कि आजकल ऐसा अनुमान करने वाले ज्योतिषी नहीं हैं जो आपकी मृत्यु की सही सूचना आपको दे सकें। बाबा जी ज्योतिषियों के फेर में बहुत रहते हैं। तीन dates उनके लिए फेल हो गई। मैंने कहा कि अभी आपके लिए वहाँ vacancy नहीं है, चिन्ता मत करो। कहने का मतलब यह है कि जैसे-जैसे शरीर शिथिल हो, अपनी साधना को प्रखर से प्रखतर बनाओ और जब अपनी संयम साधना में बाधा आने लगे, तो योग्य गुरु की शरण में जाकर अपनी सल्लेखना को पूर्ण करो, यम सल्लेखना लें। इसलिए 12 वर्ष की सल्लेखना लेना उचित नहीं है।
अब रहा सवाल जिसने 12 वर्ष की सल्लेखना ले ली है और काल पूरा हो गया है, तो उनका क्या हो? तो इसमें मैं क्या करूँ, वो ही जानें। वर्तमान में ऐसे कई मुनि हैं जिन्होंने सार्वजनिक रूप से 12 वर्ष की सल्लेखना घोषित की, 15-16 वर्ष पूरे होने को हैं। अब क्या है? अब आयु तो है नहीं। उनका संयम का एक नियम टूट गया। बढ़िया से संयम जब पल रहा है, तो मरने की क्या जल्दी, अभी आपका संयमलब्धि स्थान है। इस समय संयम का पालन करोगे, तो अच्छा है। समाधि लोगे, मरोगे तो असंयत देव हो जाओगे। हम सल्लेखना क्यों लेते हैं? अपने व्रतों की सुरक्षा के लिए न, जब हमारे व्रत सुरक्षित हैं, तो सल्लेखना की ज़रूरत ही क्या? इसलिए यह उचित नहीं।
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