जीवन में दर्द को बांटें या सहें?

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शंका

रहीम दास जी का एक दोहा है-

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। 

सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥ 

एक बात यह भी कही जाती है कि अगर दर्द को अन्दर ही दबाया जाए तो वह नासूर बन जाता है दर्द अगर बाँट दिया जाए तो उससे थोड़ा हल्का हो जाता है और उसको सहन करने की शक्ति आ जाती हैI तो इन दोनों नीतियों में इतना अन्तर क्यों?

समाधान

जो कमजोर होता है वह दर्द बांटता है और जो मजबूत होता है वह दर्द सहता हैI हम दर्द बांटने का प्रयास न करेंI दर्द में खुश रहने की कोशिश करेंI हम जितना दर्द सहेंगे, उतना संहनन होगाI दूसरों के लिए हम हमदर्द बने पर अपना दर्द किसी से न बांटेI इसी में हमारी महानता हैI महान पुरुष अपने ऊपर आई हुई बड़ी-बड़ी विपत्तियों को भी बहुत सहज भाव से सह लेते हैं और वह उनको आराम से झेल लेते हैंI हमे उसी आदर्श का अनुकरण करना चाहिएI

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