तिर्यंच जीव कैसे करते हैं अपना कल्याण?

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शंका

तिर्यंच जीव कैसे करते हैं अपना कल्याण?

समाधान

तिर्यंच जीव में भी बहुत ज्ञान होता हैं, उनको अपनी आत्मा का ज्ञान होता है, वैराग्य भी हो जाता है। तिर्यंच जीव के अंदर धर्म कैसे होता है, मैंने एक घटना पढ़ी जो आप लोगों को सुनाता हूँ, बड़ी मार्मिक घटना है। 

ब्रह्मचारिणी गाय! आपने ब्रह्मचारिणी स्त्रियों को तो देखा है। कभी ब्रह्मचारिणी गाय को देखा या सुना है क्या? नहीं सुना न? अयोध्याप्रसाद गोयलीय ने इस घटना को लिखा अपने ‘गहरे पानी पेठ’ में। उसमें आया ऐसा कि ग्वालियर के एक परिवार में  एक गाय थी। और वह अपने पीछे कई बछ्ड़ों को जन्म दे चुकी थी। आख़िरी में एक साथ उसने जुड़वाँ बछड़ों को जन्म दिया। उन बछडों में इतना प्रेम था कि एक ही साथ दूध पीते और एक साथ लघु शंका करते थे, ऐसे बछड़े थे। इसके उपरांत उस गाय को जब पुनः गर्भवती बनाने का प्रयास किया जाने लगा, बार-बार प्रयास करने के बाद भी वह गर्भवती नहीं हो पा रही थी। और जब उसे बार-बार ऐसा प्रयास किया गया, सांड के पास ले जाया गया तो एक दिन उस घर में रहने वाली एक छोटी सी बच्ची को सपना आया।सपने में गाय ने कहा कि “मैंने ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया है। और अब मुझे पुनः गर्भवती बनाने का प्रयास न किया जाए। और यदि ऐसा होगा तो मैं कुएँ में कूदकर जान दे दूँगी।” यह गाय के वाक्य हैं !  “मैंने ब्रह्मचारी व्रत ले लिया है, अब मुझे गर्भवती बनाने का प्रयास न किया जाए। यदि ऐसा होगा तो मैं कुएँ में कूदकर जान दे दूँगी।” बच्ची ने घर के लोगों को बताया। घर के लोगों ने उसे हंसी में उड़ा दिया कि ऐसा कहीं होता है क्या? आदमी का ब्रह्मचर्य नहीं पलता तो गाय कहाँ से पालेगी। जब उसको वापस गर्भवती बनाने की चेष्टा की गई, तो गाय एकदम तीर की तरह भागी और घर के आंगन में एक कुआँ था उसमें छलांग लगाकर अपनी जान दे बैठी। जैसा सपने में बताया था। तो यह एक गाय के अंदर प्रगट हुवे संयम के भाव का उदाहरण है। 

पुराणों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं। एक हाथी का प्रसंग भी लगभग ९० साल पुराना है। ‘हाथी ने ली संल्लेखना!’ डॉक्टर नेमीचंद जी ने इसको निकाला था, अपने तीर्थंकर में। जिसमें एक अँग्रेज़ शिकारी ने लिखा कि एक हाथी जो बड़ा विकराल हाथी था, जिसके सामने आने से लोग ठिठकते थे, उस हाथी को अपने जीवन के अंतिम दिनों में कुछ ज्ञान हुआ और लगातार १५ दिन तक वह एक पेड़ के नीचे ही रहा और कुछ नहीं खाता । दूसरे हाथी उसको सूखे पत्ते ला करके देते वह खाता, हरे पत्ते तक नहीं खाता और सल्लेखना पूर्वक उसने अपने देह का त्याग किया! उस अंग्रेज शिकारी ने उसके बारे में पूरा लिखा।

तो यह इनमें भी ज्ञान है। पशु बोल नहीं पाते पर समझते सब कुछ है। आत्मज्ञान मनुष्य क्या, पशु पक्षियों को भी हो सकता है और उसके आधार पर वे अपने जीवन को बदलने में समर्थ हो सकते हैं।

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