सम्मेदशिखर जी की वंदना किस प्रकार करें?

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शंका

पर्वतराज शिखरजी की वन्दना किस प्रकार करनी चाहिए?

समाधान

जिनको पर्वत राज की वन्दना करनी है, सबसे पहली बात, आप अपनी चाल से चलें। मुख से श्वास न लें, नाक से लें। तय करके चलें कि जब तक मैं पर्वत के ऊपर न चढ़ जाऊँ, कम से कम चौपड़ा कुण्ड तक, तब तक कहीं बैठूँगा नहीं। थक जायें श्वास उखड़ने लगे तो लाठी के सहारे थम कर श्वास को एक एक नोरमल कर लें। ‘ओम ह्रीं नमः’ का मन ही मन जाप करें। अपने मन में एक अहोभाव जगाएँ कि मैं कितना भाग्यशाली हूँ। उस पावन भूमि की वन्दना के लिए आने का सौभाग्य पाया है जिसमें अनन्तानन्त भव्य आत्माओं को मुक्ति मिली जिसका कण-कण पवित्र है। उसकी रज में अपने माथे पर चढ़ा रहा हूँ। ऊपर जाकर जब चरणों की वन्दना करें तब चरणों का स्पर्श करें और आँखें बंद करें और एक पल को ऐसी धारणा बनायें कि यह वही स्थल है। जहाँ से तीर्थंकर भगवन्त ने निर्वाण को प्राप्त किया। यदि आपके पास धारण बनाने की थोड़ी शक्ति है, तो कल्पना करें कि इसी स्थान से वो भगवान अपनी स्वर्णमयी औदारिक शरीर से एक माह तक कायोत्सर्ग में लीन रहे। उन्होंने योग निरोध करके मुक्ति को पाया। उनकी इस औदारिक देह की वह पवित्र रज यहाँ विद्यमान है और मैं उसे ग्रहण कर रहा हूँ। मन ही मन प्रार्थना करें कि ‘हे भगवन, जिस तरह आपने राग, द्वेष व मोह को आपने संसार से सदा के लिए नष्ट कर दिया, हम भी ऐसी शक्ति पायें, क्षमता आये व पात्रता विकसित हो कि हम भी अपने राग, द्वेष और मोह से ऊपर होकर संसार से मुक्त हो सकें। भगवन आपने मोक्ष पा लिया। आज मोक्ष नहीं मिलता लेकिन ऐसी कृपा का प्रसाद हो कि हमें मोक्ष न मिले तो न सही लेकिन मोक्ष मार्ग बना रहे। मेरा मोक्ष मार्ग न छूटे, ये शुभ भावना होनी चाहिए। ये भावना भावें कि हर टोंक से मैं कुछ ऊर्जा ग्रहण कर रहा हूँ। जिस भी भगवान की टोंक पर आप वन्दना करो तो तीन प्रदक्षिणा करो और नौ बार उन भगवान का जाप करो। जल्दी उतरने के लिए पर्वत पर मत चढ़ो, वन्दना करने के लिए पर्वत पर चढ़ो। इतनी धरती है उसकी ऊर्जा को वहाँ से लेकर आओ जितना बन सके मन लगाओ। 

दूसरी बात- पूरे पर्वत पर कहीं गंदगी मत फैलाओ। हो सके तो पूरी वन्दना में कुछ खाओ-पीओ मत। यदि शरीर आपका साथ नहीं देता, कुछ लोगों को problem आती है, तो ये करो कि केवल जल लो, वह भी पारसनाथ टोंक की वन्दना के बाद। अगर न हो सके तो बीच में केवल जल लें। जल भी लेने से नहीं चलता तो किसी अन्न के अलावा लें और जो भी लें, शुद्ध लें। आप अपने साथ अपनी सारी चीजें लेकर के जाओ ताकि अशुद्धि न हो।

तीसरी बात- यदि आप के पास कोई पाउच या कूड़ा है उसे अपने साथ बैग में रखें नीचे लाकर के डालें और हो सके तो वहाँ की कुछ गंदगी लौटते समय अपने साथ ले आयें ताकि पर्वत की पवित्रता में भी आप निमित्त बन सको।

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