जियो और जीने दो का स्वरूप सल्लेखना में कैसे प्रकट होता है?

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शंका

जियो और जीने दो का स्वरूप सल्लेखना में कैसे प्रकट होता है?

समाधान

“जियो और जीने दो” का संदेश सार्वभौमिक व सार्वकालिक है। सल्लेखना या संथारा लेते समय भी यही बात है, स्वयं अपनी अहिंसा का अनुपालन करते हुए जियो और अन्य प्राणियों को अन्तिम क्षण तक जीने दो। यह सावधानी सल्लेखना और संथारा लेने वाले के मन में होती है कि “मेरे द्वारा अन्य किसी क्षूद्रतम प्राणी का भी विघात ना हो!” इसलिए वह अन्तिम क्षणों में अपनी प्रवृत्तियों को और अधिक सयंत कर लेता है। मैं आपसे यह कहूँगा कि “जियो और जीने दो” का सर्वोत्कृष्ट रूप यदि प्रकट होता है, तो वह सल्लेखना, संथारा में ही होता है।

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