धार्मिक स्थलों पर शादी विवाह में शराब के बढ़ते चलन को कैसे रोकें?

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शंका

आजकल धार्मिक क्षेत्रों, धर्मशालाओं में शादी विवाह पार्टियों खुले आम में मदिरा-पान आदि मादक पदार्थों का सेवन होने लगा है। ये कदापि उचित नहीं है महाराज। इस कुप्रथा पर अंकुश लगाने के लिए क्या उपाय हैं? कृपया युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करें?

समाधान

जैन धार्मिक संस्थानों में मद्यपान जैसी प्रवृत्ति होना सम्पूर्ण जैन समाज के ऊपर कलंक है। ये कतई नहीं होना चाहिए। ये घोर निन्दनीय कुकृत्य है और धार्मिक स्थलों में इस प्रकार का सेवन महान पापबन्ध का कारण है। मैं एक बात आपको बता दूँ हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि

अन्य क्षेत्रे कृतं पापं धर्म क्षेत्रे विनश्यति,

धर्मक्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति।

मतलब दुनिया में किये गये पाप धर्म क्षेत्र में नष्ट होते हैं और जो व्यक्ति धर्म क्षेत्र पर आकर पाप करता है उसके लिए वो वज्र लेप होता है। आजकल ये बातें दिनों-दिन देखने को मिल रही हैं। ‘कल्चर’ दिनों-दिन बिगड़ता जा रहा है। लोगों की सोच थोड़ी वैसी ही बनती और बिगड़ती जा रही है। आधुनिक फैशन बन गया है मद्यपान। शादी विवाहों में क्या, आजकल सभी लोग गर्व का अनुभव करते हैं मद्यपान करने में! यह उचित नहीं है। हमें प्रारम्भ से अपनी पीढ़ी को सँभालना चाहिए। बच्चों को प्रारम्भ से गुरुओं के सम्पर्क और संसर्ग में लाकर उन्हें इसकी प्रतिज्ञा दिलानी चाहिए और उन्हें समझाना चाहिए कि अपने जीवन में इस प्रकार की वर्ज्य वस्तुओं से कैसे बचें? तभी वो आगे चलकर भटकेंगे नहीं। प्रायः उच्च शिक्षा के नाम पर या अन्य निमित्तों में अपने बच्चों को लोग ज्यादा ‘liberty’ (स्वतन्त्रता) देते हैं। वे बच्चे जब उस स्वतन्त्रता को पाकर जब इस तरह की प्रवृत्तियाँ करने लगते हैं तो मामला बहुत गड़बड़ हो जाता है। आज की युवा पीढ़ी में जबर्दस्त भटकाव है।

मेरे सम्पर्क में ऐसे कई प्रकरण आये हैं जिनमें कई युवकों के साथ युवतियाँ मद्यपान करने में प्रवृत्त हो गई। मैं एक स्थान पर था एक व्यक्ति अपनी बेटी को ले करके आया। उसकी बेटी “सेंट जेवियर्स कॉलेज” में स्नातक द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत थी। उस व्यक्ति ने कहा ‘महाराज! इसकी शराब छुड़ाइए।’ मैं आश्चर्य चकित हुआ कि द्वितीय वर्ष बी. कॉम. की छात्रा अपने पिता के साथ आई है। पिता कह रहा है कि इसकी शराब छुड़ाइये। मैं बिल्कुल आश्चर्य में पड़ गया कि ये जैन लड़की आखिर ऐसा कैसे कर सकती है? और आप सुन कर आश्चर्य करोगे। पहले मैंने सोचा कि शायद इसने कभी कभार लिया होगा। उससे बात की तो पता चला कि वह लड़की पूरी आदी (Addict) थी। प्रायः महीने में दस-बारह बार वह शराब पीती थी। वो भी थोड़ी बहुत नहीं, वह पियक्कड़ हो गयी थी। हँसने की बात नहीं है। उस लड़की को समझाने में मुझे पन्द्रह मिनट देने पड़े। उसे समझाया, झकझोरा तब जाकर उसने प्रतिज्ञा ली। बड़ी खुशी की बात है कि अभी कुछ दिन पहले वह परिवार मेरे पास आया और मैंने उस बच्ची से पूछा तो बोली महाराज जी आपसे नियम लेने के बाद मुझ में बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया है मेरा जीवन सुधर गया है। 

जड़ तक जाने के बाद मैंने जब उस बच्ची से पूछा तो उस बच्ची ने बात कही कि ‘जब दसवीं कक्षा में थी मेरे एक दोस्त ने कोल्ड ड्रिंक में “बीयर” मिला कर दी। मुझे अच्छा लगा तो फिर मन में उसकी जरूरत जैसी प्रकट हो गयी तब मैने बीयर से शुरुआत की। फिर शराब की आदी हो गयी।’ ये जो प्रवृत्तियाँ हैं इन पर अंकुश रखना चाहिए। अब आपको चाहिए कि आप अपने बच्चे के प्रति जागरूक बनें। ताकि बच्चे सही रास्ते से भटके ही नहीं। सामाजिक संस्थानों में इस तरह का कृत्य न हो। अक्सर बच्चे ही ऐसा करते हैं ऐसी बात नहीं है, बड़े भी करते है बल्कि बड़े जो आज कर रहे हैं वो बचपन से ही कर रहे हैं। इसलिए बच्चों पर अंकुश लगायें ताकि आगे आने वाली पीढ़ी न बिगड़े और जो तथाकथित बड़े लोग ऊँची जीवन शैली (high profile, high lifestyle) के नाम पर इस तरह का कृत्य करने लगे हैं, ये बहुत अच्छी बात नहीं है। 

 इस पर अंकुश लगाने के लिए कुछ दबाव होना चाहिए। आजकल शादी विवाहों में कुछ मैंने ऐसे भी प्रकरण सुने हैं कि जहाँ जैनियों के शादी विवाहों के समारोह में शराब की स्टॉल लगाई गई। मैं पूरी समाज से ये कहना चाहता हूँ अगर कोई भी जैनी के शादी विवाह के इस तरह के कार्यक्रम में इस तरह की चीजों का इन्तज़ाम हो और आपको इसकी सूचना मिले तो वो चाहे कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो, उसके उस कार्यक्रम का बहिष्कार कर दो, असहयोग कर दो, लौट आओ। जाने के बाद मालूम पड़े तो कहिए मैं इस पाप का अनुमोदन नहीं करूँगा। जिस विवाह समारोह में विनायक यन्त्र की साक्षी में फेरे पड़ने हैं वहाँ शराब हम स्वीकार नहीं करेंगे। लौट करके चले आओ, चार बातें सुना करके आओ कि तुम जैन नहीं, जैनियों के ऊपर कलंक हो। खाली लौट आयेंगे लोग तो कभी दूसरे के मन में ऐसा दुःसाहस नहीं होगा। सामने वाले की थू-थू होनी चाहिए। कहाँ तो जैनियों के शादी समारोह में जमीकन्द तक का परहेज होता था, और आज कुछ भी होता है। 

 ये इस तरह की मद्यपान जैसी कुप्रवृत्तियाँ बहुत निन्दनीय है ऐसे लोगों की घोर भर्त्सना करनी चाहिए। ऐसे लोगों को समाज में कभी आगे नहीं आने देना चाहिए क्योंकि ये हमारी सामाजिक परम्परा को तार-तार कर रहे हैं। उनके प्रति जागरूकता होनी चाहिए हर माध्यम से ऐसे व्यक्ति की ऐसी भर्त्सना हो कि वह आदमी खुद शर्मिन्दगी महसूस करे कि ऐसा कार्य मैंने नहीं करना चाहिए था। 

इसी प्रकार अगर आप अपने धार्मिक संस्थान किसी को देते हैं, प्रतिष्ठान देते हैं, तो जिसको भी आप दें, पहले से लिखवाकर लें कि ऐसी चीजें न हों और यदि हों, यदि आपके विवाह समारोह में और आपकी विदाई के बाद अगर एक भी बोतल या इस तरह की कोई चीज मिल जाती है, तो समाज उनके लिए दण्डात्मक कार्यवाही करे। उसको जवाबदेह बनाया जाये। तब जाकर इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी।

 इस पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। आजकल इन्हीं चीजों को बढ़ाने लगे तो गड़बड़ होगी। इससे बचने का उपाय कि दिन में शादी विवाह का कार्यक्रम हो, रात में न हो। रात में तो 3-D होता है। 3-D के तो कई मतलब हैं। मेरे हिसाब से 3-D का अर्थ ड्रिंक, डिनर और डांस (Drink, Dinner and Dance)! ये रात में ही ज्यादा होते हैं। सारे पाप अँधेरे में ही होते हैं, उजाले में कम। रात्रि के विवाह और भोज पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए समाज को। सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में रात्रि भोजन पर लगभग प्रतिबन्ध है। इधर झारखण्ड, बिहार में जब आया, यहाँ भी रात्रि भोज और रात्रि विवाह पर सामाजिक प्रतिबन्ध है। न के बराबर ही कोई शादी विवाह रात में होते हैं। एक स्तर पर तो ये अंकुश कारण बना है लेकिन दूसरे स्तर पर ये होना चाहिए।

 तीसरी बात में आपसे क्या कहूँ? मुझे मालूम पड़ा कि कि यहाँ की धर्मशालाओं में भी मुझे एक दो संस्था के पदाधिकारियों ने बताया कि महाराज किससे कहें? हमारे यहाँ शिखर जी की वन्दना करने के लिए यात्री आते हैं और जाते हैं तो उसके बाद शराब की बोतलें कमरे से मिल जाती हैं।

 हालाँकि गुणायतन अभी तक बचा हुआ है पर अभी दो दिन पहले ही किसी संस्था के पदाधिकारी ने मुझसे कहा कि महाराज कैसे कहें? उन पर अंकुश होना चाहिए जो लोग इस तरह का कार्य करते हैं। कमेटी भी उस पर कितना अंकुश करे? एक-एक आदमी का बैग तो चैक नहीं कर सकते, लेकिन जो ऐसा कर रहे हैं वो तीर्थक्षेत्र पर आकर नरक जाने का रास्ता खोल रहे हैं। अरे भाई! कम से कम यहाँ आकर तो अंकुश रखो। अगर इतना अपने आप पर नियन्त्रण नहीं है, तो तीर्थक्षेत्र में मत आओ। कण्ट्रोल करो। धर्मक्षेत्र में आकर के मद्यपान सेवन के लिए, लानत होनी चाहिए। 

 मैंने एक ऐसे व्यक्ति को देखा जो पहाड़ चढ़ा और कहीं से उसको गन्ध आ गई तो वहीं ले लिया; क्या है ये? व्यसन है ही ऐसी चीज, जो व्यक्ति के विवेक को कुण्ठित करती है। कुण्ठित कर दे, उसे कहीं न छोड़े, ऐसी तलब पैदा कर दे कि उसके बिना रह न सके वो व्यसन है। ये बहुत बुरी प्रवृत्ति है और इस प्रवृत्ति के रोकथाम के लिए हर सम्भव प्रयास करना चाहिए। हमें लोगों को सामूहिक संकल्प भी देना चाहिए। मैं तो कहता हूँ कि जितने लोग इस प्रकरण को सुन रहे हैं, सुनेंगे, वे इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाए, फैलायें और खुद इसका संकल्प लें और लोगों को भी संकल्पित करायें ताकि आप अपने धर्म को आप अपनी परम्परा को, अपनी संस्कृति को, अपनी समाज को सुरक्षित रख सकें और अपना जीवन धन्य कर सको।

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