शंका
गृहस्थ जीवन में रह कर भी कैसे रहें तटस्थ व्रती?
समाधान
हमारे यहाँ गृहस्थ जीवन में रहते हुये अपने आप को तटस्थ व्रती बनाये रखने का सूत्र बताते हुए कहा है कि-
‘रे सम्यक दृष्टि जीवड़ा, करें कुटुंबा प्रतिपाद,
अंदर से न्यारा रहे, धाय खिलावे बाल’।
सम्यक दृष्टि जीव संसार की सारी क्रियाओं को करता है, लेकिन भीतर से वह अलग रहता है। जैसे धाय बच्चे को खिलाती है और उस पर अपना सारा मातृत्व उड़ेल डालती है। उसको यह पता रहता है कि यह बच्चा मेरा नहीं है। तो बस, अगर आप अपनी गृहस्थी में रहते हुये भी अपने आप को पापों से अलिप्त रखना चाहते हैं तो उसका एक ही सूत्र है, भेद विज्ञान! भेद विज्ञान को याद रखो, सब कुछ करो परन्तु स्वयं को कभी मत भूलो।
Leave a Reply