पति खोने पर जीवन कैसे व्यतीत करें?

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शंका

यह मेरी एक मित्र का प्रश्न है।

‘मेरी शादी ८ माह पूर्व हुई थी। अभी मैं अपने पति को खो चुकी हूँ। ससुराल वाले एक पुरानी प्रथा को आज भी मानते हैं और मुझे हमेशा अपशगुन की दृष्टि से देखते हैं। दिन भर टोंट कसते रहते हैं, इससे परेशान होकर मैं अपने माता-पिता के पास आ गई। अब माता-पिता चाहते हैं कि मैं दूसरी शादी करूँ और अपनी जिंदगी की नई शुरुआत एक बार फिर से करूँ। मैं दूसरी शादी नहीं करना चाहती हूँ क्योंकि मैंने आपसे सुना था कि ‘हमेशा कर्म सिद्धान्त पर विश्वास करो।’ मैंने यह सोचा है कि मेरे जीवन में पति का साथ इतना ही था। मैं आपसे शंका समाधान के माध्यम से आशीर्वाद चाहती हूँ कि मैं अपने शादी के इस मामले में अडिग रहूँ। इससे जुड़ी मेरी शंका है कि हमारे भारत की एक परम्परा थी, हर भारतीय नारी के जीवन में एक ही पति होता था। एक पति के सिवा उसका कोई नहीं होता था। आज के आधुनिक युग में ऐसी महिलाओं को शादी के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ऐसी महिलाओं को जो छोटी उम्र में अपने पति को खो चुकी हैं उन महिलाओं को अपना जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिए जिससे हमारी समाज की अमूल्य धरा को हम बचा सके?

समाधान

सबसे पहली बात तो मैं उस बहन को आशीर्वाद दूँगा जिसके ऊपर यह विपदा आई और तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारे ऐसे प्रश्नों के माध्यम से अनेकों का उद्धार होता है। इसका नेटवर्क बहुत बड़ा है रोज इसके पास प्रश्न आते हैं और मुझे बताती है कि महाराज जी इन प्रश्नों के बाद कईयों का जीवन भी बदला है, बहुत अच्छा कार्य है। आप सब का उद्देश्य ऐसा ही पवित्र होना चाहिए जहाँ तक सवाल है समाज की कुरीति का, एक तरफ तो लोग कहते हैं कि विधवा विवाह न हो और दूसरी तरफ कोई वैधव्य के दौर से गुजरे तो उसे अमंगल और अपशकुन की दृष्टि से देखना मनुष्य की दकियानूसीपन की पहचान है। अगर किसी स्त्री ने पति को खोया तो उसका क्या दोष? पति अपनी उम्र से गया, उसने थोड़े ही मारा। पति खोया और उसके बाद वो उसको झेल रही है और ब्रह्मचर्य के साथ अपने जीवन का निर्वाह कर रही है, तो मैं कहता हूँ उसे अशुभ-अमंगल की दृष्टी से देखने की जगह एक ब्रह्मचारिणी की तरह श्रद्धा से देखना चाहिए। ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रही है, उसको आदर देना चाहिए। ऐसे आदर की परम्परा रहेगी तभी तो कोई स्त्री इस तरह से कर पाएगी। 

मेरे पास एक बार एक बहन जी आई, बड़ी धर्मात्मा थी। विवाह के १५ वर्ष या १७ वर्ष बाद पति का वियोग हो गया। उसने दूसरी शादी कर ली। जब आई एक दिन बड़ी व्यथित होकर बोली , ‘महाराज मैंने बड़ा अपराध कर लिया?’ मैंने पूछा ‘क्यों कर लिया?’ बोली महाराज ‘जहाँ जाती सब मुझे अशुभ, अमंगल की दृष्टि से देखते थे। मैंने सोचा चलो एक जगह एक खूटे से बन्ध जाऊँ, कम से कम सुरक्षित तो रहूँगी लेकिन मुझे अब अपने किए पर बड़ा पश्चाताप होता है।’ हमने कहा हमारा धर्म कहता है कि स्त्री का एक ही पति होना चाहिए। ‘मैंने बहुत गलत निर्णय लिया महाराज अब मैं क्या करूँ?’ लेकिन लोग जब तक ऐसा करते हैं ऐसी स्थिति आती है और लोगों की दृष्टि देखो- कोई स्त्री अगर वैधव्य प्राप्त करने के बाद पुनर्विवाह कर लेती है समाज उसे शान से स्वीकृति देती है और एक शील-संयम का पालन करती है उसको अशुभ अमंगल की दृष्टि से देखती है, तो तुम्हारी धर्म में श्रद्धा कहाँ? उसे सम्मान दो, सुरक्षा दो, सत्कार करो और मंगल की दृष्टि से देखो तब यह परम्परा आगे चलेगी।

पूछा है कि ऐसी स्त्रियाँ अपना जीवन निर्वाह कैसे करें? सबसे पहले दृढ़ता से अपने जीवन में आगत परिस्थितियों का सामना करें, दोहरी जिम्मेदारी निभाएँ। यदि उसकी सन्तान हो तो अपनी सन्तान को माँ और पिता दोनों का प्यार दे। पढ़-लिख कर आजकल की स्त्रियाँ बहुत योग्य होती है और उनकी पढ़ाई का सही लाभ ऐसे मौके पर होता है। जब कोई आपत्ति-विपत्ति आती है दृढ़ता से धैर्य पूर्वक कोई अपनी जीविका का साधन अपनाये और आत्मनिर्भर होकर अपने और अपने बच्चों का लालन-पालन करें। ब्रह्मचर्य की अधिक साधना करें, जीवन में संयम रखें, जब जिम्मेदारी पूरी हो जाए तो त्याग और वैराग्य के रास्ते को अंगीकार कर ले। धर्म ध्यान के साथ जीवन जियें, दोबारा कीचड़ में न फंसे अन्यथा जीवन में बर्बाद हो जाएगी। मैं एक ऐसी महिला को जानता हूँ जिसके पति की मृत्यु हुई, अपने भतीजे से शादी की, भतीजे की मृत्यु हो गई, देवर से शादी की और वह भी चल बसा। यह कोई तरीका है? यह वाम मार्ग है, धर्म का सच्चा स्वरूप नहीं है। हमें इससे बचना चाहिए, हम सही मार्ग पर चले, सही को सही सम्मान दे तो काम हो। उस बहन से कहो माँ-बाप के घर में संरक्षण मिला, बहुत अच्छी बात है। माँ-बाप का आभार जतायें और माँ-बाप से कहो हम आप पर भार नहीं। चिन्ता मत कीजिए, आपकी बेटी नहीं हम आपका बेटा बनकर के जिएँगे और आप की लाज बढ़ाएँगे, हमें अपनी जीविका करने दीजिए और आप अपनी कोई जीविका की उचित व्यवस्था करें। आप अपनी जीविका का पालन करो और माँ-बाप के साथ रहकर अपने जीवन का निर्वाह करो अथवा किसी सतगुरु की शरण में चले जाओ और अपने जीवन का उद्धार करो।

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