कर्मोदय से आनेवाले शुभाशुभ विकल्पों का निराकरण कैसे करें?

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शंका

जो पूर्व भव के कर्मोदय से शुभाशुभ विकल्प आते हैं उन विकल्पों का निराकरण कैसे होगा? उसमें हमें क्या करना चाहिए।

समाधान

आप ये कह रहे हैं कि कर्मोदय से शुभाशुभ विकल्प आते हैं, पर मैं ये नहीं मानता हूँ। कर्मोदय से शुभाशुभ विकल्प नहीं आते हैं। यदि कर्मोदय से शुभाशुभ विकल्प आते तो महान-महान मुनियों को ऐसे-ऐसे कर्म के उदय आये तो उनके अंदर भी शुभाशुभ विकल्प आने चाहिए थे। अंजना के ऊपर उपसर्ग आया उसे भी विकल्प आना चाहिए। मैना सुन्दरी पर उपसर्ग आया उसे भी विकल्प आना चाहिए। तो कर्मोदय से शुभाशुभ विकल्प नहीं होते है। 

आप कहेंगे ‘महाराज! आप तो उल्टी बात बता रहे हैं। हमने तो सुना यही है कि कर्मोदय से शुभाशुभ विकल्प आते है।’ मैं दोहरा रहा हूँ कर्मोदय से शुभाशुभ विकल्प नहीं आते है। कर्मोदय में अज्ञान रखने से शुभाशुभ विकल्प आते हैं। अज्ञानी क्या करता है? कर्म के उदय में बह जाता है। अपने मन को नहीं सम्भाल पाता है और ज्ञानी समझता है कि ‘ये कर्म का उदय है मुझे इसे सहना ही पड़ेगा और स्वीकारना ही होगा।’ तो कर्म के उदय से उत्पन्न सहयोगों को अज्ञानी सम्भालता नहीं इसलिए शुभाशुभ संकल्प-विकल्प होते हैं और ज्ञानी कर्म के उदय में उत्पन्न समस्त संयोगो को महज कर्म संयोग मानकर स्वीकार लेता है, तो उसके मन में संकल्प विकल्प नहीं होते हैं। तो आप अपना संकल्प विकल्प शान्त करना चाहते हो ईमानदारी से, तो कर्म का उदय मानकर संभाल लो।

मैं आपसे एक बात पूछता हूँ कि आप कहीं जाएं और वहाँ का सिस्टम आपके मन के अनुकूल न हो फिर भी आप फॉलो करते है या नहीं? करते हो तो क्यों करते हो? क्योंकि वहाँ का सिस्टम ऐसा है और हमें यह करना होगा। अब आप चाहें कि बिना नंबर के आपको बुला लिया जाए तो आप नहीं आ सकती हैं, ये यहाँ का सिस्टम है और आपको इससे कोई तकलीफ नहीं है। आपने सिस्टम को स्वीकार किया क्योंकि ये सिस्टम है। सिस्टम को स्वीकार किया, आपके मन के अनुकूल नहीं था फिर भी आपको कोई फर्क नहीं पड़ा। यदि  यहाँ के सिस्टम को एक्सेप्ट नहीं करते और यहाँ के सिस्टम के साथ छेड़छाड़ करते हो तो क्या होगा? मन खराब होगा। तो संत कहते हैं कि अपने मन को शांत और सरल करने का सच्चा उपाय ये है कि संसार के सिस्टम को समझ लो। संसार का सिस्टम है क्या? कर्म। ये सब कैसे रेगुलेट होता है? कर्म से। कौन कंट्रोल करता है? कर्म करता है। मेरे बस का नहीं हैं तो सारा कार्य अपने आप हो जाता है। अज्ञान से मन दुखी होता है और ज्ञान से मन सुखी होता है।

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