कर्म के बंध में मंदता कैसे लायें?

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शंका

ऐसा क्या उपाय है जिससे कर्म बन्ध की मन्दता हो?

समाधान

कर्म बन्ध की प्रक्रिया तो सहज चलती रहती है इसको रोक नहीं सकते है। आयु कर्म को छोड़ कर शेष सात कर्मों का बन्ध प्रत्येक संसारी जीव को प्रति पल होता है। लेकिन ये हमारे हाथ में है कि हम कर्म बन्धन की प्रगाढ़ता को कम करें। इसके लिए हमें आचार्य उमास्वामी के परामर्श को मानना होगा। 

आचार्य उमास्वामी ने हमें एक सूत्र दिया और कहा कि एक ही क्रिया अनेक लोक करते हैं पर परिणाम सब का एक सा नहीं होता। अलग-अलग लोगों की क्रिया का अलग-अलग परिणाम आता है। तत्वार्थसूत्र में एक सूत्र आता है उन्होंने लिखा-

“तीव्र-मन्द-ज्ञाता-ज्ञात-भावाधि-करण-वीर्य-विशेषेभ्यस्तद्धिशेषः”

अच्छे या बुरे कर्म का बन्ध, तीव्रता और मन्दता; जैसे तीव्र भाव से करें तो तीव्र होता है और मन्द भाव से करे तो मन्द होता है। जितना ज्ञान पूर्वक करें उतना अधिक होता है, जितना अज्ञानता से करें उतना अल्प होता है और जितनी रूचि और उत्साह से करें मन लगा कर करें उस तरीके से उसमें हीनाधिकता होती है। 

मैं आपको सार बताऊँ, अच्छा कार्य करना हो तो उसे पूरे प्राणों से करो। ऐसा सोचो कि ‘विधान में आये हैं, तो एक दिन भी बैठ जायेंगे तो काम हो जायेगा, एक सेकेण्ड का भी नहीं छूटना चाहिए।’ अच्छे कार्य को पूरा मन लगाकर पूरे प्राणों से भरकर करो ताकि जो पुण्य मिले वह प्रगाढ़ मिले और बुरे काम करने का प्रसंग आये तो मन मार कर करो। आपकी रूचि अल्प हो आपका उत्साह मन्द हो आपकी संलिप्तता यदि कम हो तो आप पाप की प्रगाढ़ता से बच सकते हैं। यही एक सूत्र है। अच्छे काम को तुरन्त कर डालो और बुरे काम को हमेशा कल पर टालो। बुरे काम को जितना बन सके टालो तो काम होगा। 

मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ आप लोग भोजन करते हो; मिठाई खाते हो। मिठाई को खाते हो; मिठाई को आप चाव से खाते हो और दवाई को कैसे खाते हो? मिठाई तो खाते है और दवाई खानी पड़ती है। अन्तर है मिठाई चाव से खाते हो और दवाई बचाव में खाते हो। बस मैं आपसे इतना ही कहता हूँ कि धर्म को मिठाई की तरह सेवो और पाप को दवाई की तरह करो तुम्हारा बन्धन कम हो जायेगा।

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