बच्चों के प्रति राग-रहित वात्सल्य कैसे रखें?

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शंका

मेरी दो बेटियाँ हैं। मैं उन्हें कैसा वात्सल्य और अनुराग दूँ की वो मेरे मोह का कारण ना बने और मैं भी उनके मोह का कारण ना बन पाऊँ?

समाधान

आप लोग मेरी भावना में पढ़ते हैं “फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह दूर ही रहा करे”। निश्चित आप कर्तव्य भाव से अपना काम करो, कर्ता बुद्धि से नहीं!  

सम्यक दृष्टि के बारे में एक बहुत अच्छा दोहा आता है,

“रे समदृष्टि जीवड़ा करे कुटुंब प्रतिपाल, अन्दर से न्यारा रहे धाई खिलावे भात”

धाय एक बच्चे को खिलाती है, पूरा मातृत्व उड़ेल देती है। बच्चा कुछ पल के लिए सोचता है यही मेरी असली माँ है। लेकिन धाय जानती है कि ‘यह मेरा बच्चा नहीं है, मैं कर्तव्य का पालन कर रही हूँ’। अपनी संतान की क्या? पूरे परिवार की आप सेवा करो, कर्तव्य भाव से करो!  ‘संसार में हैं, मेरा दायित्व है इसलिए कर रहे हैं; लेकिन जब यह शरीर भी मेरा नहीं तो और कौन मेरा होगा?’ सब पर है, यह भीतर अनुभव करो! मुँह से मत कहो! कुछ लोग अतिरेग कर देते हैं, कर रहे हैं और कह देते है कि ‘तुम लोग तो मेरे से पर हो’ तो किए-कराए पर पानी फेर देते हैं। ऐसा कहने की जरूरत नहीं है, भीतर के श्रद्धान को गाढ़ बनाने की आवश्यकता है इससे वात्सल्य तो उमड़ेगा, मोह नहीं।

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