युवाओं को शराब के शौक से कैसे बचाएँ?

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शंका

आज-कल यंगस्टर्स कभी – कभी अल्कोहल ड्रिंक करते हैं, कहते हैं कि “मैं एडिक्टेड (addicted) नहीं हो रहा हूँ, मुझे आदत नहीं पड़ रही है बस सब का साथ देने के लिए ड्रिंक कर रहा हूँ और कम मात्रा में ले रहा हूँ। मैं तो बस सब ट्राई करना चाहता हूँ, इससे मुझे कोई नुकसान नहीं होगा” ऐसे में उनको कैसे समझाएँ?

समाधान

जो कहते हैं कि “हमने सिर्फ ट्राई किया है, एडिक्टेड नहीं है, इसका एडिक्शन हमको अभी नहीं हुआ।” उनके लिय नीति कहती है – किसी बांध पर एक छोटी सी सुराख हो और उसे उसी समय बंद कर दिया जाए तब तो कोई खतरा नहीं और सुराख को सुराख मानकर उपेक्षित कर दिया जाए, तो वो सुराख फैलकर दरार का रूप ले लेती है और दरार बन जाने के बाद उसे बाँध पाना बहुत मुश्किल होता है, वह सब कुछ नष्ट कर देती है। अपने जीवन में संयम का जो बांध है या संस्कारों का जो बांध है, उसमें रंच मात्र भी सुराख नहीं होने देना चाहिए। यह नन्हीं सी सुराख पूरे जीवन को बर्बाद कर देने वाली होती है। इसलिए इनसे अपने आपको बचाकर के रखे। जो लोग ऐसा करते हैं वे शुरुआत में ही सोचते हैं कि “मैं इसमें एडिक्ट थोड़ी हुआ” लेकिन एडिक्ट होने में देर नहीं लगती।

मैं आपको एक ऐसी लड़की की बात कहता हूँ जो लड़की कोलकाता में सेंट जेवियर्स कॉलेज में दाखिल हुई। अपने माँ-बाप की बड़ी आशा और अपेक्षाओं के साथ गई। घर से बाहर पढ़ने के लिए गई। अच्छे संस्कारों में पढ़ी हुई लड़की भी, वहाँ जाकर के बर्बाद हो गई। संगति का कुछ असर हुआ और उसके साथियों ने शराब पीने को प्रेरित किया। शुरूआत में वो नकारती रही फिर उससे कहा “एक -आध बार इंजॉय करके देखने में क्या बुराई है” और उसने जो शुरुआत की, एक बार किया, दो बार किया, तीन बार किया और उसको चस्का लग गया। उसके पिताजी उसे मेरे पास लेकर के आए और कहा “महाराज इस लड़की की शराब छुड़वाईए।” मैंने उस लड़की से बात की तो सकते में आ गया। मैंने सोचा एक -आध बार जीवन में पिया होगा वह लड़की एक -आध बार पीने वाली नहीं, पूरी पियक्कड़ हो गई। हफ्ता में कम से कम १ या २ बार तो उसको चाहिए। वह भी थोड़ी बहुत मात्रा में नहीं पूरी, यह दशा होती है। बर्बाद होने में व्यक्ति को बिल्कुल देर नहीं लगती। इसलिये आज सावधान हो जाना चाहिए, यह बहुत बुरी लत है। आपने शुरुआत की और यहाँ से आपकी बर्बादी हो जाएगी। इसलिए इनसे अपने आप को बचाएँ।

आपके लिए आमिर खान ने “सत्यमेव जयते” में उस व्यक्ति के जीवन को दिखाया कि जिसने शौक किया और किस तरीके से एडिक्ट हुआ। ऐसे एक नहीं अनेक लोगों को मैं जानता हूँ। उस लड़की को समझाने में मुझे आधा घंटा लगा, वो बहुत मुश्किल से कंट्रोल में आई। अभी मैंने फिर उसके पिताजी से पूछा, बहुत सुकून और सन्तोष के साथ कहा कि “अब मेरी बच्ची ठीक है।” बहुत मुश्किल होती है जो इस तरह की बातों को स्वीकार कर लेते हैं, चाहे वातावरण को देखकर, दोस्ती के कारण, संगति के कारण- वे अपने जीवन के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ करते हैं। 

इसलिए मैं तो चाहता हूँ जो भी इस तरह की उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाते हैं, वो पहले गुरुओं के चरणों में आएँ और कुछ संकल्प लें तभी उनके जीवन में सफलता होगी। अन्यथा कैरियर भले ही बन जाएगा, पर कैरेक्टर चौपट हो जाएगा। एक बार यह सब चीजें मुँह पर लग गई तो कब तुम जीवन से पथभ्रष्ट होओगे, पता नहीं। सर्वनाश होने से पहले ही अपने आप को सम्भाल लेने में ही समझदारी है।

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