चिन्ता को कैसे मिटाएँ?

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शंका

किसी कवि ने कहा है – “चिन्ता करने से बीमारी मिलती है और चिंतन करने से बिहारी! मानो तो मौज है, समस्या तो रोज है!” तो ‘चिन्ता’ कैसे मिटाई जाए जीवन से और ‘चिंतन’ ऐसा क्या करें कि जीवन में मौज भर जाए?

समाधान

एक कविता सुनाता हूँ, किसी अंग्रेज लेखक की है “why worry?” उसका अनुवाद “चिंता क्यों?”  

“आप स्वस्थ हैं या बीमार, यदि आप स्वस्थ हैं तो चिन्ता की कोई बात ही नहीं। यदि आप बीमार हैं तो केवल चिन्ता एक है, आप स्वस्थ हो जाएँगे या आपको मरना पड़ेगा। यदि आप स्वस्थ हो जाते हैं तब चिन्ता की कोई बात ही नहीं। यदि आपको मरना पड़ता है, तो चिन्ता की केवल एक बात है- आप को जन्नत नसीब होगी या जहन्नुम में जाना पड़ेगा। आप को जन्नत नसीब होती है तब तो चिन्ता की कोई बात ही नहीं है। यदि जहन्नुम में जाना पड़ा तो आप अपने पुराने मित्रों से हाथ मिलाने में इतने व्यस्त हो जाओगे कि चिन्ता का वक्त ही नहीं मिलेगा तो फिर चिन्ता क्यों?”

ये अपने सन्दर्भ में किसी ने लिखा था, बहुत पुरानी कविता आज मुझे याद आ गई। मुझे लगता है १०- १२ वर्ष के अन्तराल के बाद आज इसका स्मरण आया,  लेकिन ये एक नजरिया है। मैं तो कहता हूँ, चिन्ता क्यों आती है? हमें इस बात को समझना चाहिए। जिनका आत्मविश्वास कमजोर होता है, जिनकी सोच नकारात्मक होती है, जो भविष्य में उलझे रहते हैं, अतीत की स्मृतियों में होते हैं उनके मन में चिन्ता आती है और कुछ लोग हैं जो फिजूल की बातों में अपना जी उलझा लेते हैं, उनको चिन्ता आती है। 

अगर चिन्ता से मुक्त होना है तो वर्तमान में जीने का अभ्यास कीजिए, आत्मविश्वास से लबरेज होइये, सकारात्मक सोचिये, कर्म सिद्धान्त या विधि के विधान पर भरोसा करना शुरू कर दीजिए, सिर पर छाई सारी चिन्ता पल भर में दूर हो जाएगी।

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