प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के संरक्षण हेतु क्या करें?

150 150 admin
शंका

प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के संरक्षण हेतु क्या करें?

समाधान

प्राकृत-अपभ्रंश हमारी मूल भाषा है। संस्कृत भी भारत की प्राचीनतम भाषा है और यह जैन वांग्मय का बहुत बड़ा आधार है। इस पर हम सब को ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि भाषा से संस्कृति सुरक्षित होती है। अपनी संस्कृति की सुरक्षा हम तभी कर पाएँगे जब भाषा की सुरक्षा हो। इसलिए भाषा की सुरक्षा होनी चाहिए और भाषा की सुरक्षा तभी होगी जब भाषा विधियों और भाषा के अध्ययन-अध्यापन की प्रवृत्तियाँ बढ़ें, लोग उसके लिए एक दूसरे को प्रेरित और प्रोत्साहित करें। 

वर्तमान में इस तरफ आप लोगों का रुझान कम हो रहा है और रुझान के कम होने की वजह मुझे यही समझ में आती है कि वर्तमान की जो विद्या है वह अर्थविद्या बन गई है। हम अर्थविद्या से बचें, परमार्थोन्मुखी दृष्टि अपनाएँ तो बहुत लाभ होगा। 

मैं कहता हूँ, पुरुष लोग यदि अपने किसी व्यवसाय परीक्षाओं के कारण इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दे सकते तो महिलाएँ, जो ग्रहणी हैं, घरेलू हैं, वे तो इनका अध्ययन कर सकती हैं। इसका एक लाभ होगा जहाँ वो भाषा का ज्ञान प्राप्त करेंगीं, उसके साथ-साथ उन्हें जैन आगम के मूलभूत ग्रन्थों के स्वाध्याय करने का भी सौभाग्य मिलेगा और वह स्वाध्याय उनके जीवन में व्यापक बदलाव का आधार बनेगा।

Share

Leave a Reply