व्यस्त दिनचर्या में जैन धर्म का निर्वाह किस प्रकार करें?

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शंका

व्यस्त जिंदगी में, व्यस्त दिनचर्या में किस प्रकार से जैन धर्म का निर्वाह किया जाएँ?

समाधान

धर्म में व्यस्तता बाधक नहीं होती। मेरी धारणा है कि समय का अभाव उन्हें नहीं होता जो व्यस्त होता है, समय अभाव उन्हें होता है जो अस्त-व्यस्त होते हैं। आप कितने भी व्यस्त हों अगर धर्म आपकी प्राथमिकता है, तो समय निकलेगा। आज आप यहाँ आए तो खाली थे इसलिए नहीं आए बल्कि आपने अपने आपको खाली बनाया इसलिए आये। आपने सोचा ‘नहीं! मुझे चलना है, शंका-समाधान अटेंड करना है,’ तो यह आपकी priority थी। ‘महाराज जी! से प्रश्न पूछना है,’ यह आपकी प्राथमिकता थी तो आप आ गए। तो बस मैं आप से कहता हूँ कि कुछ मत करो बल्कि अपनी प्राथमिकता बदल दो तो धर्म जीवन में जुड़ जायेगा और फिर धर्म करने का थोड़ा तरीका बदल जायेगा। 

आप धर्म कर सकते हो। मेरे सम्पर्क में एक उद्यमी है। उन्होंने कहा कि ‘महाराज जी! मेरी लाइफ़स्टाइल बड़ी विचित्र है, सुबह से मुझे मॉर्निंग वॉक करने के लिए जाना होता है। डॉक्टर ने बोल रखा है, नहीं तो डायबिटीज और हार्ट की प्रॉब्लम हो सकती है। एक घंटा मुझे मॉर्निंग वॉक में लगता है और मेरे कुछ अपने कार्य होते हैं और मुझे किसी भी हालत में ९:३० बजे अपने ऑफिस में जाना जरुरी है और घर से मेरे ऑफिस जाने में डेढ़ घंटा लगता है। अब आप बताइए कि मैं ५:०० बजे उठता हूँ, मॉर्निंग वॉक भी जाऊँ, नित्य क्रियाओं से निर्वित्त भी होऊँ तो कब तो आपका प्रवचन सुनूं और कब मन्दिर जाऊँ? मैं सब करना चाहता हूँ पर हो नहीं पाता।’  मैंने कहा कि सब बहुत easy है। वह बोले- क्या, कैसे? मैंने कहा- मॉर्निंग वॉक पर जाते हो तो एक काम करो कि मॉर्निंग वॉक में जितनी देर वॉक करो तो मौन हो जाओ और मौनपूर्वक मॉर्निंग वॉक करो। णमोकार जपते हुए तुम्हारी धर्म आराधना हो गयी। वह बोले कि ‘महाराज! ऐसा कर सकते हैं?’ मैंने कहा- हाँ! कर सकते हैं। बस किसी से बात नहीं करना। एक घंटा पंच-परमेष्ठी से बात होगी। तुम घर से ऑफिस जाते हो तो डेढ़ घंटा लगता है। तो जितनी देर गाड़ी में बैठो तो मौन लेकर के जाओ और उतनी देर प्रवचन सुन लो, टेप सुन लो। यह उस समय की बात है जब कैसेट चलती थी। वह व्यक्ति रोज मेरी एक कैसेट सुनता है। तो धर्म करने का तरीका बदल लो। महिलाएँ, जिनको परिवार बड़ा होने के कारण घर से समय नहीं मिल पाता तो जितनी देर किचन में रहो तो मौन रहो, पाठ करो, भक्तामर पढ़ो, णमोकार जपो। तुम व्यर्थ की किलकिल से बचोगे, अच्छे भाव होंगे और उस भोजन पर उसका असर पड़ेगा तो स्वास्थ्य भी बढ़िया रहेगा, परिवार में प्रेम बना रहेगा और धर्म पल जायेगा।

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