दशलक्षण में १२ व्रतों को कैसे पालें?

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शंका

दशलक्षण में १२ व्रतों को कैसे पालें?

समाधान

यदि आप चाहें तो १० दिनों के लिए पूरे १२ व्रत ले सकते हैं। पाँच अणुव्रत ले लीजिए। हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह का स्थूल रूप से त्याग। 

संकल्पी हिंसा के त्याग का अणुव्रत, उसके पाँच अतिचारों से बचिए। किसी को मारिए-पीटिए मत, किसी को बन्धन में मत डालिए। किसी के नाक-कान मत छेदिए। किसी पर अतिभार आलोपन मत कीजिए और किसी के अन्न-पान का निरोध मत कीजिए। यह आपका अहिंसा व्रत हो गया। 

सत्य व्रत का पालन करते हुए संकल्प ले लीजिए कि झूठ नहीं बोलेंगे। ऐसा सच नहीं बोलेंगे जिससे कहीं कोई परेशानी हो। अगर झूठ बोलना भी हो, तो वहाँ बोलेंगे जहाँ सच बोलने से विपदा हो। ऐसा आप नियम ले लीजिए आपका सत्य अणुव्रत हो गया। १० दिन तक हम किसी के साथ गाली-गलौच नहीं करेंगे। किसी की निजी बातों को उजागर नहीं करेंगे। किसी की चुगल खोरी नहीं करेंगे। कोई फर्जी लिखा-पढ़ी नहीं करेंगे। किसी की धरोहर को नहीं हड़पेंगे। आप का सत्य अणुव्रत हो गया। 

अचौर्य अणुव्रत, बिना दी हुई चीजें किसी की नहीं लेंगे। अपने बैग के अलावा किसी दूसरे का बैग नहीं उठाएँगे। अपना बैग, चटाई, चप्पल, माला के अलावा दूसरे का कुछ भी नहीं लेंगे। मेरी खो गई तो खो गई, पर मैं दूसरे के खोने में निमित्त नहीं बनूँगा। चोरी तुम्हारे सारे १० दिन के पुण्य को क्षीण कर देगी। अपनी चीज संभाल के रखो। १० दिन तक हम किसी तरीके कोई चोरी की नहीं करेंगे। 

ब्रह्मचर्य व्रत का पालन आपका ब्रह्मचर्य अणुव्रत है।

जितना आप लेकर आए हो और जितना अपने शरीर पर है, उसके अलावा कोई परिग्रह नहीं रखेंगे। आपके परिग्रह का परिमाण बन गया। यह अपरिग्रह अणुव्रत

५ अणुव्रत के बाद, इसी प्रकार दिगव्रत में अपने शिविर के campus (परिसर) , अपने क्षेत्र या अपने नगर को छोड़कर कहीं बाहर नहीं जाएँगे। 

इसके अतिरिक्त प्रवचन के समय के लिए, शंका समाधान के समय के लिए, अभिषेक पूजन के समय के लिए आदि मन्दिर से बाहर या शिविर से बाहर नहीं जाएँगे, यह देश-व्रत हो गया।

अनर्थ दंड नहीं करेंगे, झूठन नहीं छोड़ेंगे। जो चीज़ रुचि की नहीं है उसको नहीं लेंगे। यह अनर्थदंड है। फालतू हम पंखा नहीं चलाएँगे। फालतू लाइट नहीं जलाएँगे। फालतू ऐसी (A.C) नहीं चलाएँगे। अनर्थदंड से बच गए। ३ गुणव्रत हो गए।

भोगोपभोग का नियम लो। 

दो समय की सामायिक करो। 

प्रोषधोपवास, उपवास-एकासन करो। प्रतिदिन कर सको तो ठीक, नहीं तो अष्टमी चतुर्दशी के दिन करो, यदि शाम को भी कुछ लेना हो तो स्वल्पाहार लो, अन्न का त्याग करो, अपनी शक्ति के रूप जो कर सको। आपका प्रोषधोपवास हो गया।

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