हमारे यहाँ आहार हो ही नहीं सकता इस नकारात्मकता को कैसे दूर करें?

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शंका

हमारे यहाँ महाराज का आहार तो हो ही नहीं सकता। हमारे कर्म ही ऐसे हैं। इस नकारात्मकता को कैसे दूर करे?

सुशीला जैन

समाधान

यह दुर्बलता है। आपने कहा महाराज का आहार हो ही नहीं सकता, हमारे तो कर्म ऐसे है।

एक बार ऐसा हुआ हम २ साधु थे और २० चौके थे। स्वाभाविक रूप से २० के यहाँ तो आहार होना नहीं है। 20-22 दिन में वहाँ चौको में आहार हो जाते थे। संयोग ऐसा बना कि एक के यहाँ 3 दिन के अन्तराल में दोनों के आहार हो गए और उसके बगल में जो महिला थी उसका 18 दिन से चौका खाली जा रहा था। एक दिन वह महिला आयी और फफक-फफक कर रोने लगी। मैंने पूछा, “क्या बात है?” वह तो एकदम नॉर्मल नहीं हो पायी लेकिन उसके साथ जो दूसरी महिला थी उसने कहा- “महाराज जी, पापियों के यहाँ आहार नहीं होते क्या? महाराज जी, इनका 18 दिन से चौका लग रहा है, किसी के भी आहार नहीं हुए। पड़ोस के चौके में दोनों महाराज के आहार 3 दिन में हो गए और उसने कह दिया कि, “पापियों के यहाँ आहार थोड़े होते हैं, तब से यह रोए जा रही है। महाराज आप इनको समझाइए। मैंने कहा, अरे  तुमने अपने आप को पापी मान लिया। तुम पापी नहीं, महान पुण्य आत्मा हो कि साधु के रहने पर आहार देने का भाव किया और न केवल भाव किया, तुमने चौका लगाने का मन बनाया और न केवल चौका लगाया, अपितु रोज पड़गाहन करने के लिए खड़े हैं। भाग्य तो उनके फूटे हैं जिनके पास सब प्रकार की अनुकूलता होने के बाद भी दान देने के भाव नहीं हो रहे है। तुम्हारा भाग्य नहीं फूटा। तुमने अपने हाथ से आहार दिया, तभी पुण्य अर्जन हुआ, ऐसी बात नहीं है। अब ठीक है। हमने किया तो-कृत, कारित, अनुमोदन हो गया। अब 1 दिन में महाराज जी का आहार तो एक के यहाँ ही होगा। बस आपका पुण्य थोड़ा कमजोर पड़ गया पर पाप नहीं लगा, पाप उनका जो चौका लगा नहीं पाए। कभी भी धर्म के क्षेत्र में यदि पूर्ण लाभ नहीं मिलता तो अपने मन में हीन भावना नहीं लाना चाहिए। अनुमोदना करके भी आप वह लाभ ले सकते हैं जो सामने वाला साक्षात् देकर के भी प्राप्त न कर पाए। समझ गए। इसलिए हमेशा ऐसे ही पॉजिटिव सोच रखकर के चलना चाहिए।

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