पाठशालाओं को आधुनिक कैसे बनाएँ?

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शंका

आज के आधुनिक वातावरण में पाठशालाओं को आधुनिक कैसे बनाएँ जिससे ये सर्वप्रिय बन जाएं? क्योंकि ऐसा भी देखा गया है कि आज के समय में बच्चों को ही नहीं, बच्चों के माँ-बाप को पाठशाला पढ़ने की जरुरत महसूस हम करते हैं, ताकि वो बच्चों को पाठशाला भेजने के लिए प्रोत्साहित कर सकें। इसमें आप मार्ग दर्शन प्रदान करें।

समाधान

पाठशाला समाज की एक आवश्यकता है। पर बदलते हुए दौर में पाठशाला की व्यवस्था को बदलना भी आज जरुरी है, समयोचित है। मैं तो समझता हूँ समय के साथ जो नहीं बदलता, समय उसको कहीं का नहीं रहने देता। हमें वक्त के साथ बदलना चाहिए। आज पाठशाला में अगर आप आधुनिक रूप देना चाहते हैं टेक्नोलॉजी (technology) के साथ शिक्षा दें। अब किताबों से रटाने की जरुरत नहीं है। नई-नई टेक्नीक (technique) लें, बच्चों को वो बातें दृश्य और सभ्य माध्यम के माध्यम से दिखाएँ। आज एनीमेशन (animation) और अन्य माध्यमों से बहुत सारी बातें बताई जा सकती हैं। बच्चों को वो सब चीजें बिलकुल स्क्रीन पर दिखाया जाए प्रोजेक्टर (projector) के माध्यम से दिखाया जाए, सिखाया जाए। कुछ चीजों को प्रायोगिक तरीके से दिखाया जाए और कुछ इस तरीके के गेम्स (games) विकसित किया जाए, जिसके माध्यम से बच्चें खेल-खेल में तत्त्व का ज्ञान प्राप्त कर लें। नई टेक्नोलॉजी (technology) का आधार ले कर यदि बच्चों को पढ़ाया जाएगा तो मैं मानता हूँ बच्चों का भी अट्रैक्शन (attraction) बढ़ेगा और माता-पिता (parents) भी उसके लिए उत्साहित होंगे, उनको संस्कार मिलेगा और यदि ऐसा परिवर्तन नहीं होता तो बहुत दिक्क्त होगी। 

बच्चों के लिए आज एक बड़ी बाधा बनती है भाषा, ज्यादातर बच्चे अँग्रेजी माध्यम से पढ़ते हैं और अँग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले बच्चों की हालत ये है कि हिंदी समझते नहीं। जो हिंदी ही नहीं समझते वो हमारे आगम के संस्कृत, प्राकृत की भाषा को कैसे समझेंगे। तो उनके लिए हमें उस तरीके की भाषा का प्रयोग करना आवश्यक है जिससे बच्चें उस चीज को समझ सकें और उसे अपने जीवन का अंग बना सकें, जीवन में परिवर्तन ला सकें। तो नई तकनीक से शिक्षा देने की जरुरत है, जिससे बच्चे, बच्चे की तरह सिख सकें; बड़े, बड़े की तरह सिख सकें। हम ऐसा कहते हैं, आज मनोविज्ञान भी इस बात को बताता है, अक्षर की जगह चित्र हमारे मानस पर ज़्यादा देर तक अंकित रहता है। शब्द हम सुनते हैं, उसको भूल जाते हैं। पिच्चर (picture) हम देखते हैं तो लम्बे समय तक वो याद बानी रहती है। इसी तरह संस्कार को उभारना है, तो हम केवल सुनाने और सिखाने की जगह दृश्य माध्यम के साथ अगर बच्चों को बातें पढ़ाएँ तो वो उनके दिमाग पर, उनके मानस पर स्थाई रूप से असर करेगा, प्रभावी होगा और वो उनके जीवन को परिवर्तित करने में भी कारण बनेगा। साथ ही साथ पाठशाला के साथ उनके कुछ संस्कार ऐसे भी बढ़ाएँ कि गुरुजनों के प्रति उनका झुकाव बढ़े, धर्म के प्रति उनका लगाव बढ़े। पाठशाला में मैंने एक कमी ये देखी कि बच्चे पाठशाला में आ तो जाते हैं, पढ़ भी लेते हैं, पर उनका धेय पाठशाला की परीक्षा तक सिमित रह जाता है, बाकि बातों को गौण कर देते हैं। नहीं, जिसके लिए हम पाठशाला पढ़ा रहें हैं उसकी तैयारी होनी चाहिए और इसके लिए व्यापक तैयारी की ज़रुरत है, उसी हिसाब से पाठ्यक्रम बनाने की जरुरत है और अध्यापकों को अलग-अलग वर्कशॉप ले करके, कार्यशालाएँ आयोजित करके प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। ताकि आज जो पाठशाला में पढ़ाने वाले अध्यापक हैं वे न केवल एक शिक्षक का रूप लें, अपितु अपने बच्चों के लिए एक अच्छे प्रेरक का भी रूप धारण कर सकें। एक अच्छा मोटिवेटर (motivator) बने और बच्चों को ऐसा मोटिवेट (motivate) करें, इतनी प्रेरणा देकर मजबूत बना दें कि सूरज पूरब से पश्चिम चले जाए, पर तुम्हारे पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चे टस से मस न हो, तब मज़ा आए!

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