क्या करें जिससे परिवार में एकता और समाज में समरसता बनी रहे?

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शंका

आजकल लोक व्यवहार में, समाज में एवं परिवार में पारदर्शिता, सहनशीलता एवं आपसी व्यवहार, रिश्तों में ईमानदारी में भारी गिरावट आती चली जा रही है। जिसके वजह से सामाजिक समरसता, पारिवारिक समरसता नहीं बन पा रही हैं। इन कमियों को दूर करने के लिए कृपया अपने अमृत वचन से एक सम्बोधन सब समाज को, परिवार को दें कि इन कमियों को कैसे दूर करें और हमारे सामाजिक और पारिवारिक समरसता कायम हो सके?

समाधान

एक घटना बता रहा हूँ। एक परिवार के कुछ सदस्य मेरे पास आए। परिवार बहुत संपन्न था, लेकिन तीन भाइयों के परिवार में भारी मनमुटाव था, खिंचाव था। संपन्नता भी थी, धार्मिकता भी थी, लेकिन कटाव खिंचाव बहुत गहरा था। तीनों के तीनों परिवार के लोग बड़े दुखी थे। संयोग ये था कि तीनों के बच्चों में आपस में बड़ा प्रेम था। प्रकरण मेरे पास आया। जुड़ा हुआ परिवार था, बच्चों ने ही कहा “महाराज जी हमारे पापा लोगों को आप समझाओ, ये लोग इतना धर्म करते हैं, आपकी संगति में रहते हैं। लेकिन इनकी आपस में बहुत कटुता है। ऐसी कटुता है, कि एक दूसरे का चेहरा देखना भी नहीं चाहते। आपके सम्बोधन से हम लोगों का घर बदल सकता हैI” बच्चों के कहने पर मेरा मन बना और मैंने बच्चों से ही पहल करवा कर के तीनों को बुलवाया। अलग-अलग बात की, फिर बातचीत में सब ने अपने गुबार निकाले। मैंने एक ही बात कही कि “तुमने लड़कर के २५ बरस बिता दिए, २५ दिन प्रेम करके देखो, देखो जीवन में कितना आनन्द आता है, केवल २५ दिन के लिए तो एक साथ रहो।” मैंने अपने उपदेश सम्बोधन से उनके परिणामों को भी समझाया, उनका ह्रदय परिवर्तन हुआ, लोगों ने एक दूसरे से क्षमा मांगी, जो गिले-शिकवे थे खत्म हुए, आँखों की आंसू की धारा में उनकी कलुषता बह गई। आज वो हमेशा कहते हैं, “महाराज जो चीज हम वर्षों की लड़ाई में नहीं पा पाए, वह प्रेम के क्षण में प्राप्त कर गए।” तो बस यह जीवन का हमारा सबसे बड़ा धन है। हमें उसे प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। इसे कभी भूलना नहीं चाहिए। 

एक किस्सा मुझे याद आ गया। एक सेठ के पास प्रसन्न होकर एक देवी आई और उससे कहा, कि “हमारे पास ३ चीजें हैं, तुम उसमें से किसे पसन्द करोगे? कोई एक चीज ले सकते हो।” सेठ ने बोला – “आप क्या देना चाहती हैं?” “हमारे पास दौलत है, शोहरत है और मोहब्बत है। इनमें से तुम किसे पसन्द करोगे?” सेठ ने कहा – इनमें से किसी चीज की, बात की, कमी नहीं है, मुझे नहीं चाहिए। फिर भी आप कहते हो तो मैं अपने परिवार में विचार कर लूँ। उसने अपने बेटे से पूछा – बेटे ने कहा, पिता जी अपने पास दौलत तो अपार है, दौलत की कमी नहीं है, पर हमारी शोहरत नहीं है। हमारी पहचान बननी चाहिए। कोई हमें पूछता नहीं। अगर देवी देती है, तो उसे शोहरत ले लो। पास में बैठी बहू ने कहा “यदि आप मेरी तरफ से कुछ पूछना चाहते हो, तो मैं इतना ही कहना चाहती हूँ, दौलत आपके पास है, अपने पास है, नहीं भी है, तो हम लोग कमा करके पाने में समर्थ हैं, और शोहरत तो ४ दिन की होती है, आज है, कल रहे न रहे, कोई पता नहीं। हम लोग बड़े प्रेम से रहते हैं, और जब तक हम लोगों के अन्दर यह प्रेम मोहब्बत बना हुआ है, तब तक सब कुछ ठीक बना रहेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। तो यदि वह देवी कुछ देना ही चाहती है, तो आप उससे इतनी ही प्रार्थना करें कि हमें मोहब्बत दे दे, बाकी सब चीजें ले जाए, हमें किसी चीज की जरूरत नहीं है।” सेठ को भी बात जमी, पूरे परिवार को बात जँची, और जब कहा गया कि “हमें कुछ नहीं चाहिए केवल मोहब्बत चाहिए, आप मोहब्बत को छोड़ दो, बाकी जिसको ले जाना है, ले जाओ, दौलत ले जाओ, शोहरत ले जाओ, लेकिन मोहब्बत को रहने दो”, देवी को बड़ा आश्चर्य हुआ। मोहब्बत को छोड़ कर के गई, थोड़ी देर बाद शोहरत पीछे पीछे आ गई और दौलत भी उसका पीछा करने लगी। जहाँ मोहब्बत है, वहीं शोहरत है, वही दौलत है। यह बात हर व्यक्ति को समझना चाहिए। अगर यह समझ आ गया तो पारदर्शिता भी होगी, समरसता भी होगी, सहनशीलता भी होगी, सहिष्णुता भी होगी, सद्भावना भी होगी। जीवन के जो भी पर्याप्त गुण हैं, सब प्राप्त होंगे।

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