बड़ों की रोक-टोक में संयम कैसे रखें?

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शंका

घर में बड़े बुजुर्ग हर बात में टोका-टाकी करते रहें तो उस समय अपना आपा कैसे बनाए रखें?

समाधान

मैं दोनों बातें कहता हूँ। सबसे पहले तो ज़्यादा टोका-टाकी करनी ही नहीं चाहिए। जो ज़्यादा टोका-टाकी करते हैं, वो अपने आपको अप्रासंगिक बनाते हैं। आपके हाथ में घड़ी है उसमें सेकण्ड का काँटा हर सेकण्ड टिक टिक करता है आपका ध्यान जाता है क्या उस पर? नहीं जाता। सेकण्ड के काँटे पर आपका कभी ध्यान नहीं जाता है। लेकिन पेन्डुलम वाली घड़ी या अलार्म वाली घड़ी जो हर घण्टे अलार्म बजाती है और एक घण्टे के पूरे होते ही टन्न सी आवाज़ आती है, तब क्या होता है? सहसा आपका ध्यान उस ओर आकृष्ट हो जाता है। पहले मैं बड़े बुजुर्गों से कहूँगा कि परिवार के छोटों की हर छोटी बातों पर टोका-टाकी करने की आदत बंद कीजिए। एक गलती पर दस बार टोकने की जगह, दस गलती पर एक बार टोकिए। सीधी भाषा में कहूँ तो सेकण्ड की सुई की तरह टिकटिकाइए नहीं, घंटे के काँटे की तरह टंकार लगाइए जो आपके बच्चों में झंकार लाए। आपको, अपने आपको घर परिवार में प्रासंगिक बनाए रखने की इच्छा है, तो कम बोलिए।

हमारे गुरूदेव की विशेषता है, हमारे संघ में उनके द्वारा संघ के संशासन की जो पद्धति है वो बड़ी ही अनोखी है। बहुत कम बोलते हैं और जो बोलते हैं उसमें रत्ती भर भी कम नहीं करते, जो बोल दिया सो बोल दिया। कम बोलना और जो बोलना उसमें रत्ती भर भी कम नहीं करना। हम लोगों ने देखा जब हम लोग शुरू में ब्रह्मचारी थे, ऐलक, क्षुल्लक थे, यदि हम लोगों से गलती हो गई वो बगल में से निकल गए, देख लिया पर कुछ नहीं बोले। हम लोग हलाकान कि कोई गड़बड़ है, लेकिन वो देखकर अनदेखी कर गए और कभी कोई बड़ी गलती हो जाए तो एक साथ पूरी फाइल खोल दें। ये प्रभाव होता है। बड़ों की ये आदत होती है कि ‘हम अपने बच्चे को रास्ते पर लगाएँ। हम नहीं टोकेंगे तो उनको कौन संभालेगा?’ मानता हूँ, टोकिए, पर ज़्यादा मत टोकिए। एक गिलास दूध में एक चम्मच चीनी डालने से दूध मीठा होता है। चीनी डालने से दूध मीठा होता है, ये सोचकर एक चम्मच की जगह यदि आप दस चम्मच चीनी डालोगे तो दूध का क्या हाल होगा? वो दूध रहेगा या चाशनी बन जाएगा? कृपया कर दूध को दूध बने रहने दीजिए उसे चाशनी बनाने से बचिए, ताकि आपका स्वाद और स्वास्थ्य दोनों बरकरार रहें। 

दूसरी बात ये कि बड़े बुजुर्ग ऐसा कहते हैं तो अपना आपा कैसे रोकें? कुछ लोगों की यह स्वभाव गत दुर्बलता होती है। वो न चाहते हुए भी बोलते हैं। उनकी प्रकृति हो जाती है। तो बड़े यदि कुछ भी बोले, छोटों का काम है कि वो अपनी सीमा का उल्लंघन न करें। अपना आपा को न खोएँ। ये मान लें कि ये उनका स्वभाव है, ये उनकी प्रकृति है। ऐसा मानकर के चलने से कोई बहुत बड़ा अन्तर नहीं पड़ेगा। उनका nature मान लीजिए; और वो भी उनका एक प्रकार का आशीर्वाद मानिए कि ये हमें टोंक रहे हैं तो हमारे भले के लिए टोंक रहे हैं। यदि आप ऐसा करेंगे तो आपका संयम बढ़ जाएगा, इसके अलावा और कुछ नहीं। बड़े अगर उम्र के प्रभाव के कारण बिगड़ रहे हैं, और उसी का अनुकरण यदि छोटे करने लगें तो ये शोभास्पद नहीं है।

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