आज के परिवेश में व्रती जीवन कैसे जियें?

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शंका

आज के परिवेश में व्रती जीवन कैसे जियें?

चन्द्रकला जी पाटनी, राँची

समाधान

व्रती जीवन जीने के लिए देश-काल की परिस्थितियाँ बाधक नहीं बनती। हर परिवेश और हर परिस्थिति में व्रती जीवन जिया जा सकता है। मैं तो कहता हूँ आज के परिवेश में भी बहुत अच्छे तरीके से लोग व्रती जीवन जी सकते हैं। देश-काल की सीमाएँ व्रती जीवन जीने में बाधक नहीं बनती, बाधक बनती है मनुष्य के मन की निष्ठा। हाँ, जरुर आप यह कह सकते हैं कि आज आप लोगों का रहन-सहन का तरीका बदल गया है, ऐसे समय में सोला, मर्यादा का खाना किस तरीके से अपनाएँ? यह बहुत कठिन दिखते हैं। किस तरीके से सोले आदि का काम करें, बहुत दिक्कत होती है। एक बार एक बहन जी ने मुझसे कहा – “महाराज में महानगर में रहती हूँ, हम मर्यादा के लिए कहाँ अनाज सुखाएँ, कहाँ मर्यादा का दूध लाए, कहाँ मर्यादा का घी लाएँ, कैसे करें? हम व्रत करना चाहते हैं, तो व्रत नहीं ले पाते। व्रती बनना चाहते हैं तो व्रती नहीं बन पाते, इसके लिए क्या करें?”

मैं तो पूरी समाज से कहता हूँ समय के अनुरूप परिवर्तन होना चाहिए। और व्रतों में शिथिलता लाने की जगह व्रतों की व्यवस्था को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। तो व्रतों की व्यवस्था को सुधारने का एक तरीका यह है कि हर बड़े शहर में किसी व्रती श्रावक के द्वारा, जो खुद व्रती हो, जिन मन्दिर के पास एक सोला भंडार खोल देना चाहिए। वहाँ वे मर्यादा की हर चीज उपलब्ध रखें, मर्यादा के गेहूं, धुला हुआ अनाज, मर्यादा का घी, मर्यादा का तेल, जो जैसा शास्त्र में वर्णित है, वह चीज वहाँ उपलब्ध करा दें। जहाँ केवल दो प्राणी रहते हैं, फ्लैट छोटा सा रहता है, जिनको धोने सुखाने की अनुकूलता नहीं है, वे वहाँ जाएँ पैसा दें, ले लें। जो बच जाएँ वह दूसरी जगह बिक जाए, ऐसी व्यवस्था यदि समाज में जगह-जगह पर कर दी जाएँ तो किसी को भी किसी प्रकार के व्रतों के पालन में किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं होगी।

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