बच्चों में दान का भाव कैसे उत्पन्न हो?

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शंका

मेरे दादा जी मुझे trustee (विश्वस्त) बनाकर गये। मैं ट्रस्टी का मतलब तो नहीं जानता लेकिन महाराज जी आप बताइये कि मैं गुणायतन के लिये क्या कर सकता हूँ?

समाधान

अगर कोई स्तोत्र है, तो उसे उसके मूल रूप में पढ़ें। स्तोत्र, जैसे भक्तामर स्तोत्र, आदि उसके साथ लोगों की आस्था इस तरह से अविरूद्ध हो गई कि वो सामान्य स्तोत्र न होकर अपने आप में मन्त्र बन गया और मन्त्र का कोई अर्थ नहीं होता। उसका phonetic प्रभाव होता है, ध्वनि वैज्ञानिक प्रभाव होता है, उसका हमारे जीवन में बहुत असर होता है। इसलिए यदि आप कोई मन्त्र पढ़ते हैं स्तोत्र पढ़ते हैं तो उसको मूल में पढ़ने की कोशिश करें और यदि पूजाएँ हैं तो जिसमें आपका भाव लगे, वो करें।

बहुत अच्छी बात पूछी है इस बच्चे ने। बन्धुओं पहले तो मैं इनके दादा धर्मचन्द्र जी बजाज की दूरदर्शिता के लिये उन्हें आशीर्वाद देना चाहूँगा। वो दस लक्षण के दिनों में यहाँ आये। उन्होंने दस दिन तक श्रावक संस्कार शिविर में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, और उनके मनोभाव गुणायतन से जुड़ने के हुए। उन्होंने काफी अच्छा सहयोग गुणायतन को दिया, और इस मनोभाव से खुद को ट्रस्टी न बनाकर, अपने बेटे को ट्रस्टी न बनाकर, अपने पोते को ट्रस्टी बनाया, ताकि उसके अन्दर अभी से धर्म के, और दान के, संस्कार उत्पन्न होते रहें और वो आगे चलकर ऐसा कार्य कर सके। मैं समझता हूँ ऐसा करके उन्होंने अपनी तीन पीढ़ी को धर्म से जोड़ लिया। ये बहुत अनुकरणीय कार्य किया है। ऐसे लोगों की जितनी प्रशंसा की जाये उतना कम है। 

इस बच्चे से मैं कहना चाहता हूँ कि तुम बड़े भाग्यशाली हो, जो ऐसे माँ-बाप और दादा-दादी का सानिध्य मिला है। तुमने पूछा है मेरे जैसा बच्चा गुणायतन की किस तरीके से सेवा कर सकता है? निश्चित अभी जो कुछ भी तुम्हारे लिये दिया गया है वो सब तुम्हारे पिता जी और दादा जी की कमाई का है। मन में ये भाव रखो। जो भी हो, अपने जैसे सारे बच्चों को ये संदेश दो कि अपनी पॉकेट मनी (जेब खर्च) से बचाकर जो भी थोड़ा बहुत हम दे सकें, गुणायतन के लिये दें। इस भाव से दें कि आने वाले दिनों में जब हम पढ़-लिख कर योग्य बनें, अपने काम-धाम को सम्भालने लगें, तो अपनी आय का एक निश्चित हिस्सा धर्म और परमार्थ के कार्य में, दान स्वरूप निकालते रहें, जिससे हमारे जीवन का उद्धार हो।

हमेशा ध्यान रखना दानं दुर्गति नाशनं दान से दुर्गति का नाश होता है। जिस व्यक्ति के अन्दर जितनी दानशीलता होती है उसका चित्त उतना ही उदार बनता है। उस उदारता से उस व्यक्ति की सोच बहुत positive (सकारात्मक) हो जाती है। उसका व्यवहार बहुत polite बन जाता है। ऐसे व्यक्ति का जीवन बड़ा ही आनन्दमयी होता है।

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