कुछ लोग मानते हैं कि स्वर्ग और नरक कुछ नहीं, पाप और पुण्य कुछ नहीं तो हम उन लोगों को कैसे समझायें?
यह बात सही है कि स्वर्ग और नरक कुछ नहीं है। मरने के बाद वाला स्वर्ग और नरक जब होगा, तो होगा, लेकिन अगर देखो तो इस दुनिया में भी बहुत सारे स्वर्ग और नरक हैं। जैसे आप देखते हो कि शहर में बहुत से ऐसे लोग होते हैं जिनके यहाँ कुत्ते भी एयरकंडीशन में रहते हैं, एक कुत्ते के लिये चार-चार नौकर रहते हैं; करोड़ों की कार में घूमता है; और उसी घर में रहने वाला एक कोई साधारण व्यक्ति उसको दो जून रोटी की भी व्यवस्था नहीं होती। बहुत सारे पशु ऐसे भी देखने को मिलते हैं जो कई दिनों से खाए नहीं, जमीन चाट-चाट करके अपना जीवन बिताते हैं। पेट और पीठ मिलकर एक हो जाती है, है ना। इसी तरह बहुत सारे मनुष्य हैं जिनके लिए चौबीस घंटे गुलछर्रे उड़ाने की अनुकूलता होती है; और बहुत से मनुष्य ऐसे होते हैं जिनके लिए दो वक्त की रोटी भी नहीं मिलती, सिर छुपाने के लिये घर नहीं, तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं, खाने के लिए रोटी नहीं, हाथ कटे हैं, पाँव कटे हैं, ऊपर से गलित कुष्ठ है, तन पर बैठी मक्खी को भगाने के लिए भी जो समर्थ नहीं, हैं ऐसे मनुष्य? ये क्या है, ये उनके दुःख की तीव्रता है। तो संसार में मनुष्य और पशु-पक्षियों में दुःख दिखता है और सुख दिखता है। यहाँ का दुःख और यहाँ का सुख एक सीमा का है। यहाँ के दुःख की एक सीमा है और यहाँ के सुख की एक सीमा है। इससे आगे का भी कोई दुःख होगा और इससे आगे का भी कोई सुख होगा। तो इससे आगे के दुःख को भोगने के लिए जीव को नरक जाना पड़ता है और इससे ऊपर के सुख को वो ही भोगते हैं जो स्वर्ग जाते हैं।
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