गर्भ में आए बच्चे को विपरीत परिस्थितियों में संस्कार कैसे दें?

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शंका

माँ अपने बच्चे के लिए पहली पाठशाला होती है। लेकिन वो माँ क्या करे जिसके गर्भ में बच्चा आया और उसे अपने चारों तरफ का वातावरण विपरीत मिला। वो अपने गर्भ के बच्चे को संस्कार कैसे दें?

समाधान

बहुत गहरा प्रश्न है। जिस घर में किसी भी स्त्री के पेट में कोई बच्चा आ गया हो, उस पूरे घर की ज़िम्मेदारी ये है कि उस घर को तनाव मुक्त, चिन्ता मुक्त वातावरण दें ताकि आने वाले उस बालक के ऊपर घर परिवार की अशुभ अमंगल तरंगों का प्रभाव न हो। 

हमारे शास्त्रों के अनुसार गर्भ को धारण करने वाली स्त्री को चाहिए कि वो चौबीस घंटा शुभ भाव में रमें रहे, पवित्र विचारों में खोये रहे, उसका पूरा समय धर्म ध्यान, आमोद-प्रमोद, और ललित कलाओं में बीते और वो शौर्य और पराक्रम की गाथाएँ पढ़े, सुने, सुनाए, जिससे उसके पेट में पलने वाले बच्चे के भीतर अच्छे संस्कार उत्पन्न हो, और वो माँ एक अच्छी सन्तान को जन्म देने का सौभाग्य पा सके। 

आपने सवाल किया है कि जिसके घर का वातावरण एकदम विरुद्ध है वह माँ क्या करे? माँ चाहती है कि मेरे पेट में जन्म लेने वाला बच्चा अच्छे से जन्म ले। उस समय उस माँ को क्या करना चाहिए? आप सब के सामने एक बहुत अच्छा उदाहरण है अंजना का, जिसके पेट में हनुमान थे और उससे विपरीत परिस्थिति शायद ही किसी गर्भवती स्त्री के जीवन में आयी होगी? उस अंजना को जिसके पेट में हनुमान जी के आते ही, पति गृह से ठुकरा दिया गया, बाहर निकाल दिया गया, और पिता के घर में भी जिसे स्थान नहीं मिला। वन में वो फिरती रही अकेली। वो अबला जिसके साथ थी केवल उसकी सखी ‘बसन्तमाला’ और कोई नहीं। भाग्य के सहारे वो निकल गयी ऐसे भयानक वन में जहाँ सूर्य की किरणें पड़ना भी मुश्किल। लेकिन आप सबको पुराण की कथा पता है कि, अंजना ने उस विषम परिस्थिति में भी कैसी समता का परिचय दिया? कितनी दृढ़ता के साथ उसका मुकाबला किया? एक पल भी उसने आर्त्र-ध्यान नहीं किया। उसने सिर्फ इतना सोचा कि ये मेरे कर्म का उदय है, और अपने द्वारा किये गये शुभ-अशुभ कर्म को सब को भोगना ही पड़ेगा। यह सोचकर धैर्य रखा। निर्दोष होने के बाद भी उसे निकाला गया तो उसने न कोई शिकायत की और न कोई फ़रियाद की। दोनों से मुक्त होकर सहज भाव से परिणति को स्वीकार किया और उसे पता था कि कर्म की सत्ता से ज़्यादा मजबूत धर्म की सत्ता होती है। आज नहीं कल मेरे जीवन में सफलता होगी, और उस घड़ी में उसने अपने परिणाम की रक्षा की। इसी का परिणाम रहा कि पेट में पलने वाले हनुमान भी पराक्रमी बन सके। सब तरफ से ठुकरा देने के बाद चारों तरफ से संकटों में घिरे रहने के उपरान्त भी अंजना ने जिस धैर्य का, दृढ़ता का पालन किया, इतनी विकट परिस्थिति में उसने बहुत साहस, पराक्रम और वीरता का परिचय दिया। इसका ही परिणाम था कि हनुमान इतने पराक्रमी निकले। उन्होंने जो साहस और पराक्रम का परिचय अपने जीवन में दिया वो बहुत अद्भुत है। एक वीर माँ ही एक वीर सन्तान को जन्म दे सकती है। अंजना के अन्दर जो दृढ़ता थी, जो साहस था, उसका ही परिणाम था जो हनुमान जैसी सन्तान को जन्म देने का उसने सौभाग्य पाया। 

जैसा आपने पूछा है कि जिस स्त्री के चारों तरफ विपरीत वातावरण हो वो अपनी सन्तान को अच्छे संस्कार कैसे दे? वो स्त्री तत्त्व ज्ञान का आश्रय ले, और विपरीत परिस्थिति में अपने आप को अप्रभावित रखने का प्रयास करें। उसके आखिरी क्षण की कोशिश ऐसी हो कि उस वातावरण का अपने और अपनी सन्तान के ऊपर कोई विपरीत असर न पड़ने दें। अगर वो ऐसी क्षमता लाएगी तो उसकी सन्तान काँटे के मध्य खिले फूल की तरह जन्म लेगी, जो सारे संसार को अपने सौंदर्य से आनंदित करेगी।

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