संकोच भाव से कैसे मुक्ति पाएँ?

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शंका

संकोच भाव से हम अपने आप को कैसे ऊपर उठाएँ?

समाधान

अच्छे कार्य में संकोच होना दुर्बलता है और बुरे में संकोच होना गुण है। हमारे यहाँ कहा है कि ‘श्रावक को संकोची भी होना चाहिए।’ किन कार्यों में? पाप कार्यों के प्रति। अच्छे कार्यों के प्रति सदैव उत्साहित होना चाहिए। अच्छे कार्यों के प्रति प्रायः लोगों का संकोच होता है। वो संकोच तब दूर होगा जब आप अपनी अच्छाईयों के प्रति खुद निष्ठावान बनेंगे और उन्हें अपने लिए कल्याणकारी मानकर चलेंगे। जब आप अपनी अच्छाइयों को अपने लिए कल्याणकारी मानकर के चलने लगेंगे, तो आप को कोई संकोच नहीं होगा। कुछ लोगों की ऐसी अवधारणा होती है कि ‘लोग क्या कहेंगे?’ ये एक प्रकार की मानसिक दुर्बलता भी है। आप ये अपने दिमाग से निकाल दीजिए और भूल  जाएं। ‘मैं जो करूँ अच्छा करूँ।’ अच्छा करेंगे तो अच्छा परिणाम आयेगा। लोग कुछ भी कहें, मुझ पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। 

‘अच्छा करने के बाद भी ऐसा ही लगता है’; अगर ऐसा होता है, तो आपको कहीं न कहीं ये feeling (अनुभूति) है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ उसमें कोई  doubt (संशय) है। ये बात अपने मन से निकालिए। बस अच्छा करते जाइये।

 इसमें कोई संकोच करने की बात नहीं है। बुराई से संकोच कीजिए। मतलब आप अपने confidence level (आत्मविश्वास) को develop कीजिए। ये एक मानसिक विकृति भी है। मनोवैज्ञानिक ऐसा कहते हैं, कि किसी को अन्दर कोई guilty (अपराध भाव) भाव होता है, तो उनके मन में हमेशा संकोच होता है। अगर किसी प्रकार का अपराध भाव किसी के अन्दर है, तो वो कहीं confess (अपराध भाव को कबूल करना) करें। अपने अन्दर के अपराध भाव को बाहर निकालें। संकोच मुक्ति का ये भी एक उपाय है।

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