सामने वाले को माफ़ और उसके मन को साफ़ कैसे करें?

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शंका

कहते हैं ‘ईट का जवाब पत्थर से नहीं, प्रेम से देना चाहिए ताकि सामने वाला स्वयं लज्जित हो जाए और आप उसके प्रति कृतज्ञ हो जायें क्योंकि उन्होंने आपको प्रेम प्रदर्शन का मौका दिया।’ कहना तो सहज है मगर ऐसा हम कर नहीं पाते। राह बताएं ताकि हम भी कृतज्ञ और प्रेमी बन सके?

समाधान

प्रेमी बनने के लिए बहुत विशाल ह्रदय चाहिए। प्रेमी कौन बनता है? जो सामने वाले की गलती को माफ भी कर दे और साफ भी कर दे। माफ भी करें और साफ भी करें, समझ गए। 

आपके अन्दर सामने वाले के प्रति प्रेम होगा तो उसकी कितनी भी बड़ी गलती क्यों न होगी, आप माफ कर सकते हैं और माफ ही नहीं, प्रेम इतनी बड़ी ताकत देता है कि आप उसको साफ भी कर सकते हैं। ईंट का जवाब पत्थर से नहीं,  प्रेम से ही देना चाहिए, लेकिन मैं इसे दूसरे शब्दों में कहता हूँ। एक बार एक बहन ने मुझसे कहा कि ‘महाराज जी! हमारे हस्बैंड बहुत गुस्सैल हैं। अभी तक तो मैं बर्दाश्त करती रही, अब हमने भी ‘जैसे को तैसा’ देना शुरू कर दिया। महाराज, जैसा को तैसा देना चाहिए कि नहीं?’ हमने उससे पूछा- “अच्छा यह बताओ तुमने जब से अपने व्यवहार में परिवर्तन किया, नतीजा क्या निकला?” ‘क्या निकला महाराज, बर्दाश्त नहीं होता तो हमको भी बोलना पड़ता है।’ मैंने पूछा “पहले और अब में क्या अन्तर है?” ‘पहले मैं चुपचाप रह जाती थी तो मामला जल्दी शान्त हो जाता था, अब थोड़ा लंबा खिंचता है।’ मैंने उससे कहा कि “तुम जैसे को तैसा ही जवाब दो।” मेरे इस अप्रत्याशित उत्तर से वो सकते में आ गई कि महाराज जी ने आज उल्टी बात कैसे बोल दी कि जैसे को तैसा जवाब देना। मैंने दोहराया कि “मैं तुमसे कह रहा हूँ जैसे को तैसा जवाब देना।” बोली ‘कैसे?’ “यह बताओ, कहीं पर आग लग जाए तो तुम क्या करोगे, जैसी आग वैसा पानी डालोगे कि वहाँ पेट्रोल डालोगे?” ‘नहीं महाराज, जितनी प्रचंड आग, उसी अनुपात में पानी, चिंगारी हो तो फूँक दें, साधारण आग है, तो बाल्टी भर पानी और ज्वाला हो जाए तो दमकल बुलाते हैं, इसी का नाम है जैसे को तैसा।’ “तुम्हारे अन्दर उतनी ही सहनशीलता और प्रेम हो यह जैसे का तैसा है। वो आग बनें तो तुम पानी।” कोई आपके कपड़े फाड़ दे तो बदले में आप उसके कपड़े फाड़ोगे या अपने सियोगे। अरे! सामने वाले ने अपने कपड़े फाड़े और तुम्हारे कपड़े फटे, तुम उसके कपड़े फाड़ने में लग गए तो दोनों बराबर हो गए। इसलिए जैसे को तैसा का मतलब वह जितना दुर्व्यवहार करें, आप उतना सदव्यवहार करो। 

देखो, इसका असर कैसे होता है? रवीन्द्रनाथ टैगोर को जब नोबेल पुरस्कार मिला, पूरे विश्व से उनको बधाइयाँ मिलने लगीं। सारे विश्व में उनके प्रशंसक थे लेकिन उनका एक पड़ोसी था जो उनसे बहुत ईर्ष्या करता था और उसके मन में बड़ी जलन हुई कि ‘जरूर कोई जुगाड़ से टैगोर ने ये अवार्ड पाया है।’ रविन्द्र जी को इस बात का एहसास हो गया कि इसको हमसे तकलीफ है। अब कैसे सुधारा जाए सामने वाले को, किसी के अन्दर आग लगी है, तो उसको नियंत्रित कर पाना बहुत दिक्कत वाली बात है। रविन्द्र जी सुबह मॉर्निंग वॉक को जाते थे, लौटते समय उसके घर चले गए और चरणों में सिर रख दिया, ‘आपकी कृपा से मुझे एक उपलब्धि हुई है, आपका आशीर्वाद चाहता हूँ।’ सामने वाला एकदम पानी हो गया। उसने उन्हें उठा करके अपनी छाती से लगा लिया कि मैं तो तुम्हारी इस उपलब्धि से जल रहा था लेकिन आज तुम्हारे इस व्यवहार को देख कर मुझे ऐसा लगता है कि सच में तुम जैसे लोग ही नोबेल पुरस्कार पाने के अधिकारी है। ये है जैसे को तैसा! आप कर सकते हैं ऐसा?, इसके लिए बहुत ऊँचा दिल चाहिए, साधारण व्यक्ति के बूते की बात नहीं है।

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