जो जैन होकर नियमों का पालन न करें तो उन्हें कैसे समझाएं?

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शंका

हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमें जैन धर्म मिला। हम सभी लोग जैन धर्म के नियमों को जानते पर फिर भी नियमों का थोड़ा भी पालन नहीं करते। जब हम किसी को समझाते हैं कि ऐसा न करें तो वो हमें कहते हैं – ‘चुप रहो या ज़्यादा धर्मात्मा मत बनो’ ऐसा बोलते हैं तो ऐसा क्यों होता है?

समाधान

ऐसा उन्हीं लोगों के द्वारा होता है जिनको संसार से डर नहीं लगता है। जैन कुल में जन्म लेने के बाद भी जैन धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों के प्रति आस्थावान न हो उसका जैन होने का कोई अर्थ नहीं। ऐसे लोगों को समझाना चाहिए कि वे लोग जिन्होंने जैन कुल में जन्म नहीं लिया, उन्होंने जैन धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों को जाना, तो इससे उन्होंने अपने जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन कर दिया। हमें भी इसके मूलभूत सिद्धान्तों को समझना चाहिए। मैं उन तमाम लोगों को कहता हूँ जो अपने किसी कारणवश, परिस्थितिवश धार्मिक क्रियाओं का पालन नहीं करते हैं, वह क्रियाओं का पालन न करें कोई बात नहीं लेकिन कम से कम क्रियाओं का पालन न करने में अपने आपको गौरवान्वित महसूस न करें और दूसरे जो धार्मिक क्रियाओं का पालन कर रहे हैं उनको हतोत्साहित तो न करें। 

मैं देश-विदेश में सुन रहे इस कार्यक्रम को देख रहे श्रोताओं के ज्ञान के लिए एक बात कहता हूँ। जॉर्ज बर्नार्ड शा आयरलैंड के बड़े प्रसिद्ध समाजसेवी, चिन्तक, विचारक उनको जब जैन धर्म के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने रात्रि भोजन का त्याग कर दिया। जैन ग्रंथों का अध्ययन करने के बाद उन्होंने अपने आप को पूरी तरह जैन आचार में ढाल दिया और गांधी जी के पौत्र तुषार गांधी ने उनसे एक इंटरव्यू लिया जो उनकी आत्मकथा में छपी है, आइरिश भाषा में, तो उसमें उन्होंने कहा कि “इफ देयर इज रिबर्थ आई विश टू रीबोर्न इन जैन फैमिली” -यदि कहीं पर भी पुनर्जन्म है, तो मैं जैन कुल में जन्म लेने का सौभाग्य पाना चाहता हूँ। यह आयरलैंड में जन्मे जॉर्ज बर्नार्ड शा जैसे व्यक्ति के अन्दर के उद्गार हैं। 

वे लोग जो अपने आपको कथित रूप से जैन कहते हैं, जैन आचार और विचारों के प्रति आस्था नहीं रखते अपितु उनका पालन करने वालों की खिल्ली उड़ाते हैं उन्हें चाहिए कि अपने गिरेबान में झांक कर देखें और ठीक ढंग से अपने जीवन को आगे बढ़ाने की कोशिश करें। इस भ्रम में कभी न रहें, ध्यान रखना! भोगवाद में जीवन का समाधान नहीं है, जीवन का समाधान तो त्याग और वैराग्य के मार्ग को अंगीकार करने में ही है।

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