अभय दान का क्या स्वरूप है और एक गृहस्थ किस प्रकार से अभय दान कर सकता है?
अभय दान का अर्थ बहुत व्यापक है। अभय दान का मतलब है- किसी के प्राणों की रक्षा करना, प्राणों को बचाने का नाम अभयदान है। कुछ लोग मुनियों को आवास दान के रुप में भी अभयदान दे देते हैं। लेकिन नहीं!, आश्रय दान और अभय दान में बड़ा अन्तर है। जिससे प्राण की रक्षा हो वह अभयदान है- ‘अगर मेरे किसी कृत्य के द्वारा किसी के प्राणों का संरक्षण होता है, तो वो अभयदान की श्रेणी में आता है।’
किसी भी प्राणी को न मारने के संकल्प से और मरने वाले प्राणियों को बचाने के प्रयत्न से, एक गृहस्थ अभय दान कर सकता है। गुरुदेव की कृपा से गौशालाओं का उपक्रम अभय दान का श्रेष्टतम उपक्रम है, इनके माध्यम से आज बहुत लोगों को लाभ मिल रहा है और ऐसा अभय दान सबको करना चाहिए। आचार्य ने ऐसा लिखा है कि ‘अभय दान के बिना की जाने वाली सारी परमार्थ की क्रिया व्यर्थ है। तुम्हारा पूजा-पाठ, दान-धर्म-अनुष्ठान तब तक अर्थपूर्ण नहीं है जब तक तुम्हारे मन में अभय दान यानी जीव रक्षा का भाव न हो’; और ऐसा भी लिखा है कि ‘जो अभय दान करते हैं उसकी अल्पमृत्यु टलती है।’ इसलिए मैं अक्सर कहता हूँ कि घर के हर मांगलिक प्रसंग में अभय दान का कार्य करना चाहिए।
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