अपने दोषों को कैसे दूर करें?

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शंका

अपने दोषों को देखने और उसके निवारण हेतु क्या करें?

समाधान

होता ये है कि अक्सर व्यक्ति औरों के दोषों को देखता है, अपने दोषों को नहीं देखता। लेकिन एक धर्मात्मा जीव की यह पहचान होती है कि वह खुद के दोषों को देखता है। इसका बड़ा सरल सा उपाय है, प्रतिदिन आप शाम के समय प्रतिक्रमण करें। ‘अब यह प्रतिक्रमण क्या है?’ बहुत लोग करते होंगे, जिन्होंने प्रतिक्रमण का मतलब यह सोच रखा है कि -एक जगह बैठो, प्रतिक्रमण का पाठ करो, प्रतिक्रमण पूरा हो गया, उस प्रतिक्रमण की बात मैं नहीं कर रहा हूँ। प्रतिक्रमण का मतलब है “कृत दोष निरायरणम परिकरणम।” अपने द्वारा किए गए दोषों का निवारण करना प्रतिक्रमण है- ‘मेरे द्वारा जो दोष हुए हैं उसका निराकरण करने के लिए एक तरीका है- भगवान की साक्ष्य में या किसी एकान्त स्थल पर पहुँचें  और सुबह से शाम तक आपने जो भी कृत्य-अकृत्य किया है उसे याद करें और विचारें, जो कुछ किया, इसमें क्या सही किया? क्या गलत किया? उनकी समीक्षा करके जो जो गलत दिखे उसको देखो और अपनी निंदा करो। ‘हाँ, मैंने गलत कहा’, उसकी गरहा करो कि ‘यह मैंने गलत किया, मुझे पुनरावृति इसकी नहीं करनी है, यह मेरे मन की दुर्बलता है, मैंने ऐसा सोचा था ऐसा सोचना चाहिए था; मैंने ऐसा बोला, उसकी जगह मुझे ऐसा बोलना चाहिए था; मैंने ऐसा किया उसकी जगह ऐसा करना चाहिए था, ये मेरे मन की दुर्बलतायें है मुझे इन दुर्बलताओं का निवारण करना है। हे भगवान! मैंने अपने अज्ञानवश, प्रमादवश, संस्कारवश और कषाय से प्रेरित होकर यह जो कार्य किया, मन से, वचन से अथवा शरीर से, मेरे सभी पाप मिथ्या हो और मैं दोबारा इनकी पुनरावृत्ति नहीं करूँगा।’  ऐसा सोच कर णमोकार मन्त्र की या तो माला फेरें; या ९ बार जाप करें और अपने मन को शान्त करने की चेष्टा करें। 

नित्य प्रतिदिन यदि आप करेंगे, अपने अन्दर का आप अवलोकन करेंगे, तब आपको पता लगेगा कि मैं कहाँ-कहाँ कमजोर हूँ। अक्सर होता यह है कि इंसान को अपनी अच्छाईयाँ दिखती है और औरों की कमियाँ। होना यह चाहिए कि हम खुद की कमियाँ देखें और औरों की खूबियाँ देखें, जीवन सार्थक होगा। इसलिए अपने आप को अच्छाई के मार्ग पर सदैव लगाने का यही तरीका है, जिसे अपनाना चाहिए।

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