इन्द्रियों को वश में कैसे करें?

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शंका

मन के अनुरूप पंच इन्द्रियों का भोग करने में सभी इन्द्रियाँ पूर्ण सहयोग करती हैं। इसके विपरीत जब हम पंच-इन्द्रियों के विषयों का त्याग करते हैं तो ये ही इन्द्रियाँ उस त्याग का विरोध करती हैं और मन को विचलित करने का प्रयास करती हैं, ऐसा क्यों? क्या पंच इन्द्रियों से विमुखता मोक्ष मार्ग की प्रथम सीढ़ी है?

समाधान

यह बात सही है कि इन्द्रियों के भोग में मन पूरा साथ देता है और जब भोगों से विमुखता की बात आती है तब लोलुपता कम नहीं होती। आपने कहा कि इन्द्रियाँ साथ नहीं देतीं, हकीकत यह नहीं है; मन साथ नहीं देता। इन्द्रियाँ अपने आप में कुछ नहीं करती, उनका उत्प्रेरक मन है। मन यदि ठीक रहे, हमें इन्द्रियों से कहीं कभी भी दिक्कत नहीं होगी। इसलिए हमेशा अपने मन को ठीक बनाने का प्रयास करना चाहिए। 

गुरुदेव अमरकंटक में थे। रामकृष्ण परमहंस मिशन के ४० संन्यासी गुरु चरणों में आए। काफी अच्छी तत्त्व चर्चा चल रही थी, वे सब साधना से संदर्भित बातें कर रहे थे। उसी मध्य एक साधक ने पूछा- गुरुदेव, इन्द्रिय जय कैसे करें? गुरुदेव ने कहा- ‘बड़ा सरल उपाय है। इन्द्रिय का काम इन्द्रिय से करो।’ साधक बोले – ‘महाराज! इन्द्रिय का काम इन्द्रिय से ही करते हैं।’ गुरुदेव बोले – ‘नहीं, इन्द्रिय का काम इन्द्रिय से करो तो इन्द्रिय को जीतने की जरूरत नहीं है।’ इन्द्रिय के काम में जब मन जुड़ जाता है, तो काम बिगड़ता हैं। जो इन्द्रिय का काम है,जैसे आँख का काम है देखना, देखो, उसे अच्छा-बुरा मत मानो। नाक का काम गन्ध लेना, गन्ध लो, उसे अच्छा-बुरा मत मानो। कान का काम सुनना है, सुनो, अच्छा-बुरा मत मानो। जीभ का काम चखना है, चखो, उसको अच्छा बुरा मत मानो। स्पर्श का काम स्पर्श लेना है, स्पर्श लो लेकिन उसमें निष्टानिष्ट मत मानो। यह कौन मानता है इन्द्रिय या मन? मन।

सारा खेल मन का है इसलिए अगर हमें वैराग्य पथ पर आगे चलना है, तो सबसे पहले अपने मन को मोड़ना अपेक्षित है। मन को मोड़े बिना हम अपने लक्ष्य की ओर आगे नहीं बढ़ सकते।

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