कोरोना के दौर में कैसे मनायें पर्यूषण पर्व?

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शंका

मैं मन्दिर व्यवस्था से जुड़ा हुआ हूँ। इस वर्ष मन्दिरों में व्यवस्था किस प्रकार हो? इस सम्बन्ध में आपका निम्न बिंदुओं पर दिशा निर्देश अपेक्षित है।

  1. मन्दिरों में प्रतिदिन आने वाले दर्शनार्थी एवं पुजारी होते हैं, उन्हें कैसे व्यवस्थित करें?
  2. वो लोग जो कुछ लोग वर्षों से व्रत सम्पन्न कर रहें हैं, इस वर्ष भी करना चाहते हैं, उनकी व्यवस्था कैसे करें?
  3. जो इस वर्ष से नया व्रत प्रारम्भ करना चाहते हैं, उनकी व्यवस्था कैसे करें?
  4. क्या दैनिक पूजन के मध्य आरती होनी चाहिए?
  5. क्या रात्रि कालीन सामूहिक आरती होनी चाहिए?
  6. धूप दशमी, अनन्तचतुर्दशी व्रत, निर्वाण लाडू, क्षमावाणी का हम पर्व कैसे मनाएं?
  7. मन्दिर जी में गन्धोदक लेने-देने का व्यवहार किस प्रकार से व्यवस्थित करें?
समाधान

वर्तमान में इस त्रासदी के दौर में ये एक बहुत गम्भीर समस्या है, खास कर आने वाले पर्यूषण पर्व के अवसर पर। लोगों के सामने समस्या ये है कि हम अपना धर्म ध्यान कैसे करें? हमें एक तरफ धर्म-ध्यान भी करना है, दूसरा अपना और समाज का बचाव करते हुए सरकार के द्वारा जारी गाइड लाइन का भी पालन करना है। 

ये आपातकाल है और इस आपत्ति के काल को हमें काल के हिसाब से ही चलना चाहिए। इस आपातकालीन स्थिति में हमें उसी अनुरूप अपने आपको ढालना पड़ेगा। आम दिनों की तरह हम पूजा- पाठ नहीं कर सकतें। जहाँ तक मुझे जानकारी है, सारी गाइड लाइन में एक साथ पाँच व्यक्ति से अधिक के मन्दिरों में प्रवेश का निषेध है। और इसका पालन तो वहाँ करना ही है और इसकी जिम्मेदारी मन्दिर के प्रबन्ध व्यवस्था से जुड़े ट्रस्टों और पदाधिकारियों के ऊपर दी गई। तो उनकी ये जिम्मेदारी होती है इसको करें। 

अब रहा सवाल पर्युषण पर्व में हम क्या करें। एक समय था जब मन्दिर बंद थे, तो दर्शन भी नहीं होते थे। अब मन्दिर खुल गए हैं, तो आपको थोड़ा संयम का परिचय देना होगा। कहीं ऐसा न हो कि आपकी थोड़ी सी अधिक उत्सुकता या उत्साह के परिणाम से मन्दिर ही बंद करना पड़ जाए। कई जगह ऐसा हुआ है। जो लोगों ने अति उत्साह में ज़्यादा भाव-भक्ति दिखाई और कुछ घटनाएँ घटीं, मन्दिर बंद करना पड़ा। संक्रमण तेजी से फैल रहा है और जहाँ कहीं भी जैनियों के मध्य संक्रमण आया है वहाँ जैन समाज बहुत तेजी से प्रभावित हो रही है क्योंकि समूह में रहने वाले लोग बड़े प्रभावित होते हैं। तो पर्यूषण पर्व को हमें बहुत ही जिम्मेदारी से सम्पन्न करने की आवश्यकता है। इसके लिए मेरे कुछ सुझाव हैं। 

मन्दिरों में दर्शन तो हो आम जनों के लिए पूजन न हो। दर्शन करने के लिए भी लोग एक साथ न पहुँचे। मन्दिर आप सुबह से शाम तक खोल सकते हैं। अपने-अपने सुविधा से आप मन्दिर जाइये, वहाँ कोई द्रव्य मत चढ़ाइये। मेरे पास जो लोग आते हैं, मैं उनको श्री फल तक नहीं चढ़ाने देता। आप वन्दन कीजिये, द्रव्य मत चढ़ाइये, गुल्लक में द्रव्य डाल दीजिये। द्रव्य चढ़ाने की कोई जरुरत नहीं है। आप भगवान को धोंक  देकर के आ जाइए और कम से कम समय मन्दिर में बिताइए। एक काम तो ये कर सकते हैं। 

‘जो दशलक्षण व्रत कर रहें हैं उनके लिए क्या करें?’ व्रत आपका ही नहीं, अन्य समुदायों का भी व्रत आता है। अभी लोग गणेश का भी पालन करेंगे, इस वर्ष कहीं पंडाल नहीं है। तो जैनियों को भी तो इस बात का ध्यान देना होगा। और इसमें समाज को भी बचाना तो हमारी जिम्मेदारी है। तो क्या करें, व्रत भी हो तो दर्शन कर लें और घर में आकर पूजा करें और ऑनलाइन तो कार्यक्रम चल ही रहा है, आप उसका लाभ लीजिये । केवल स्थान तो बदलेगा और क्या होगा, वहीं बैठ करके पूजा करें ऐसी कोई जिम्मेदारी तो नहीं है। देश काल की स्थिति को देख करके चलना चाहिए। क्योंकि मैं देख रहा हूँ कि यदि दशलक्षण में सभी को मन्दिर में पूजा करने की अनुमति दे दी जाए, तो एक-एक मन्दिरों में तीन-तीन, चार-चार सौ लोग पूजा करते मिलेंगे। और वह स्थिति हमारी समाज के लिए बड़ी अप्रिय और भयावह होगी। इसलिए मैं यही चाहूँगा कि लोग मन्दिर जाएँ, दर्शन करें, बहुत इच्छा है, तो महाअर्घ्य चढ़ालें या मुनि-महाराजों की चौका में जैसी पूजा करतें हैं, उतनी पूजा कर लें, एक से दो मिनट की, आपकी पूजा हो गई। अपने घर से द्रव्य लेके जाएँ, अपना बर्तन लेके जाएँ, अपने में द्रव्य चढ़ाएँ और अपने घर लेके आएँ, वहाँ न छोड़ें, क्योंकि उससे संक्रमण का खतरा है। अपने घर में बैठ करके ठाट से पूजा करें, ऑनलाइन कार्यक्रम तो पूरे चल ही रहें हैं। यहाँ से भी चल रहें हैं, देश में अनेक स्थानों से चल रहें हैं। जो आपको पसन्द है उस कार्यक्रम को आप अटैंड कर लीजिये। अपनी पूजा-अर्चा आप सम्पन्न कर लीजिये। तो इसमें आपको कोई दोष नहीं लगेगा, आपका व्रत भी पल जाएगा और लोग मन्दिर में ही जा करके पूजा करना चाहेंगे, तो ठीक नहीं है। 

अभिषेक भी इक्का दुक्का लोग ही करें। अभिषेक के समय में भीड़ ज़्यादा होती है। इसके लिए सबसे उत्तम तो ये ही है, जो लोग प्रतिष्ठानों में, दुकानों में नहीं जाते और जो व्रती हैं, प्रतिमा धारी एक-दो लोग, उनको आप अभिषेक करने के लिए कह दीजिए। बाकि लोग अपने घरों में अभिषेक देखें। जिन मन्दिरों में ज़्यादा वेदियाँ हैं, वहाँ अगर आप इसे नियंत्रित तरीके से कर सकें, तो एक सलाह मैं देता हूँ। एक मन्दिर में मान लीजिए ग्यारह वेदी हैं। ग्यारह वेदियों में जितने लोग व्रत करने वाले हैं, सवेरे छः बजे से लेकर ग्यारह बजे तक का टाइम स्लॉट बाँट दीजिये। किसी भी वेदी में तीन-चार आदमी से अधिक न हो और उनको पंद्रह मिनट से अधिक का समय न हो। अपनी दूरी बनाते हुए लोग अलग-अलग वेदियों में जो उनको समय दिया जाए, उस समय आकर पूजा कर लें। अगर इतनी अनुशासन के साथ कोई पूजा करे तब तो उनका पूजा करने का मतलब है। आपके द्वारा दिए जाने वाली ढील से कोई उसका दुरूपयोग करे, तो ये चीज ठीक नहीं है। जो व्रत कर रहें हैं उनकी बात। 

जो नया व्रत करना चाहते हैं, तो नया व्रत अगले साल कर लेना, इस बार भाव से कर लो, जितना बने घर से कर लो लेकिन व्यवस्था को न बदलें। 

इसी प्रकार दैनिक पूजन के मध्य आरती, जयमाल पढ़ते समय लोग आरती जलाते हैं, वही आरती है, दैनिक पूजन में कर सकते हैं। लेकिन वर्तमान में अभी आरती करने के लायक समय नहीं है। आरती कभी करना हो, तो आप या तो परिवार के साथ घर में करो। बाहर तो आरती करना ही नहीं है और आरती करो भी तो अपना दीप दूसरों को मत दो, दूसरों से दीप मत लो। ये जरुरी है, नहीं तो एक-दूसरे को दीपक दोगे तो हो गया, जल जाएगा तुम्हारा दूसरा दीपक; यह सायं कालीन आरती और सुबह की आरती दोनों की बात है।

धूप दशमी, अनन्त चतुर्दशी आदि के कार्यक्रम की बात है, तो भाई, धूप दशमी और चतुर्दशी की बात है, इसमें भी हमें केवल कुछ लोगों के मध्य कार्यक्रम करना होगा। सब ऑनलाइन कार्यक्रम कीजिये। घर में भावना भा लीजिये, धूप दशमी हो गई। नियमेतिक क्रिया जो हमारी समाज की होती, समाज के एक-दो व्यक्ति मन्दिर में वो क्रियाएँ कर लें, चतुर्दशी का अभिषेक भी एक-दो व्यक्ति कर दे, बाकि लोग ऑनलाइन देख लें। सारे कार्यक्रम ऐसे हो रहें हैं। मन्दिर में भीड़ इकट्ठी करनी अच्छी बात नहीं है और गन्धोदक लेने-देने की व्यवस्था ऐसी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि गन्धोदक बार-बार लेने से संक्रमण होने की सम्भावना है। आपको बताऊँ, जब से संक्रमण हुआ है, तब से मैंने आज तक गन्धोदक नहीं लिया है। दो-एक बार सागर में लिया है। उसके बाद से गन्धोदक ही नहीं लिया। जरुरत नहीं, वन्दना कर लो, अनुमोदना कर लो। मैंने केवल इसलिए नहीं लिया कि एक सन्देश लोगों को जाए। आप एक दूसरे को गन्धोदक लेने-देने का कार्य बंद करें, ये व्यवस्थाएँ ठीक नहीं है। 

एक जगह मैंने देखा, घंटे के साथ बड़ा मॉडर्न टेक्नोलॉजी का उपयोग किया, सेंसर लगा दिया घंटे से दूर, उसके दूर से हाथ दिखाओ, घंटा बजेगा। ये टेक्नोलॉजी है, बिना छुए घंटा बज रहा है। ऐसी व्यवस्था को कोई दिक्कत नहीं है, स्वागत योग्य है। ऐतिहासिक कदम जितना उठाना है, उठा सकते हैं। ये आप सबकी जिम्मेदारी है और ये इसीलिए तो सारे कार्यक्रम ऑनलाइन किया गया है। आप घर बैठे आनन्द लीजिये। ऐसे समय में यदि आप आग्रह पकड़ते हैं, तो वो उचित नहीं है। व्रती हो या अव्रती सब को संयम का परिचय देना चाहिए। मन्दिर में दर्शन करते समय भी आप ऐसे समय जाइए, जिस समय मन्दिर में कम-से-कम भीड़ हो, हो ही नही। भीड़ तो होनी ही नहीं चाहिए। पाँच आदमी की बात की गई है, पाँच से छटवाँ आदमी दिखे नहीं ऐसी व्यवस्था करिये। ताकि आप सबकी सुरक्षा हो, आप सबकी भलाई हो। नहीं तो इनसे बहुत तेजी से संक्रमण फैलता है। कई प्रकरण ऐसे आए हैं कि मोहल्ले का मोहल्ला संक्रमित हुआ है, तो ऐसी घटनाएँ न हो। आप सब इसका ध्यान रखें।

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