विदेश पढ़ने जाएँ तो संस्कारों की छाप साथ कैसे लेकर जायें?

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शंका

आजकल जमाना पोर्टेबल (portable) का है। पहले जिन जरूरत की वस्तुओं को हम अपने साथ नहीं ले जा सकते थे वह हम अब अपने साथ कहीं भी ले जा सकते हैं। जैसे फ्रिज, ए. सी. इत्यादि। जब हम घर पर रहते हैं, अपने पेरेंट्स के सम्पर्क में रहते हैं तो हम अपने संस्कारों और आदतों को फॉलो करते हैं। पर जैसे ही हम घर से बाहर पढ़ने जाते हैं वे सारी बातें हम भूल जाते हैं। तो हम ऐसा क्या करें कि हमारे संस्कार और हमारी मर्यादाओं को हम पोर्टेबल कर सकें।

समाधान

हम घर से बाहर जाए तो अपने संस्कारों की छाप लेकर किस तरह से जाएं? जब भी आप घर से बाहर जाएँ, जाते समय माँ-बाप कुछ हिदायतें देते हैं उनको ध्यान में रखें। गुरुजनों से कुछ प्रतिज्ञाएँ लें, उन्हें जीवन के अन्तिम समय तक याद रखें, उनको कभी न भूलें। सुबह आँख खोलते ही अपने बारे में विचार करें, अपने संकल्प और प्रतिज्ञाओं को दोहराएं– ‘मेरे क्या संकल्प हैं, मैंने क्या नियम लिए हैं, मुझे क्या करना है और मेरा ध्येय क्या है, मेरा लक्ष्य क्या है?’- अपने द्वारा लिए गए संकल्पों को बार-बार दोहरायें ताकि वह संकल्प कभी आपका टूटने न पाए। 

इस तरीके से यदि आप करेंगे तो उसके परिणाम बहुत अच्छे आएँगे और व्यक्ति कभी भटक नहीं सकेगा। और यदि आप उनको भूल जाएँगे तो आपको भटकने में देर नहीं लगेगी। कैसे भी संगति हो, कैसे भी लोग हों, इस बात का सदैव ख्याल रखना चाहिए कि मेरी सीमाएँ क्या है, मेरी मर्यादाएँ क्या है, मेरा ध्येय क्या है, मेरा लक्ष्य क्या है, मैं किस बैकग्राउंड से हूँ, मेरा धर्म क्या है, मेरी जवाबदारियाँ क्या हैं?’ यदि ये बातें व्यक्ति के मानस पटल पर अंकित हो जाएं तो कहीं भी क्यों न चला जाए वह कभी भटक नहीं सकता।

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