जीवन में सरलता कैसे लायें?

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शंका

गुरुदेव! सुना है कि “It is simple to talk about simplicity but it is difficult to become simple.”सरलता की बात करना आसान है पर सरल होना कठिन है”, कृपया मार्ग दर्शन करें?

समाधान

बिल्कुल सही बात है, एकदम सरल है, कहने की जरूरत ही नहीं हैं। सरलता की बात करना आसान है, सरल बनना बहुत कठिन है। वस्तुतः हमारे अन्दर कुटिलता के संस्कार इतने गहरे बैठे हुए हैं कि हम सरल हो ही नहीं सकते। अपने अन्दर सरलता को उद्घाटित करना है, तो हमको अपनी कुटिलता को दूर करना होगा। 

कुटिल को सरल बनाने के लिए क्या करें? हमारे गुरुदेव ने एक दिन बहुत अच्छा उदाहरण दिया। अमरकंटक की बात है। १९९४ में प्रवचन में उन्होंने कहा कि एक टेढ़ा लोहा था उसको सीधा करना था तो क्या किया? उसने उसे पहले अग्नि में तपाया, लोहा लाल सुर्ख हो गया, फिर उसको एरन पर रखा और घन से मारा तो लोहा बौखलाया और उसने घन से कहा ‘भैया, अपने जाति भाई पर प्रहार क्यों कर रहे हो?’ घन बोला ‘भाई, मैं प्रहार नहीं कर रहा हूँ, टेढ़े को सीधा करने का और कोई दूसरा रास्ता है ही नहीं। तू सीधा होता तो तेरे ऊपर प्रहार नहीं होता।’ लोहे को तपाया और घन का प्रहार किया तो लोहा सीधा हो गया। मैं आपसे केवल इतना कहता हूँ कि एरन के ऊपर रखते हैं तो उस पर घन का प्रहार होता है, नीचे एरन होता है जिसके ऊपर लोहा रखते हैं। अब तो सब तरीका बदल गया है, सब automatic हो गया। बहुत पुरानी बात याद आई और उन्होंने कहा था कि ये टेढ़ापन तेरापन नहीं है। गुरुदेव का प्रवचन था – टेढ़ापन तेरापन नहीं है। टेढ़ापन को समझा, सीधापन तेरापन है, तो सीधा होना है, तो चुपचाप झेल। घन का प्रहार उस पर हुआ तो लोहा सीधा हो गया। हम जब ज्ञान का घन अपने चित्त पर मारते हैं तो हमारे अन्दर का सारा टेढ़ापन पल में दूर हो जाता है और जीवन में सरलता प्रकट हो जाती है।

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