घर-परिवार, जॉब और धर्म के बीच कैसे सामंजस्य बिठाएँ?

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शंका

मेरे पापा जी के तीन प्रतिमाएँ हैं  और हम भी यथासम्भव षट-आवश्यक का पालन करते हैं, ८-९ घंटे ड्यूटी भी करनी होती है, तो इन सब के बीच में कैसे सामंजस्य बैठाएँ कि उनकी भी असाधना न हो और अपनी जीवनशैली में आगे भी बढ़ सकें?

समाधान

घर, परिवार, अपनी जॉब और अपने स्वयं के जीवन, सबके मध्य सन्तुलन बना करके चलना चाहिए। तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम एक व्रती पिता के सन्तान हो और मां-बाप की सेवा करना तो पुण्य है ही। अगर माता-पिता व्रती हो और उनकी सेवा करोगे तो परम पुण्य हो जाएगा। व्रती की सेवा करने से सातिशय पुण्य का बन्ध होता है, साता वेदनी का बन्ध होता है। तत्त्वार्थ सूत्र में एक सूत्र होता है, 

“भूतव्रत्यनुकम्पादानसराग संयमादियोगः क्षान्तिः शौचमिति सद्वेद्यस्य।”

ये तो तुम्हारे लिए पुण्य का कारण है। अब अपने षट आवश्यक कैसे पालें? सुबह जल्दी उठो, शाम को जल्दी सो और अपने ऑफिस जाने के पहले अपने आवश्यक क्रियाएँ कर लो और ऑफिस से लौटने के बाद अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त हो करके शाम को कर लो, बीच का गौण कर दो। सुबह-शाम दो-दो घंटा अगर निकाल लेते हो तो तुम्हारे षट आवश्यक पूरे हो जायेंगे।

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