चुगली से कैसे बचें?

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शंका

बिना लाइटर या माचिस से यदि कोई चीज आग लगा सकती है, तो वह है चुगली! इधर का सामान उधर करने में जितना पाप नहीं लगता है उतना पाप इधर की बात उधर करने में लगता है। चुगली करने वालों से बचें और हम भी चुगली न करें, इसके लिए क्या करें?

समाधान

चुगली करना मनुष्य की एक बहुत बड़ी दुर्बलता है। शास्त्रों में इसे पिसुन्ता कहा गया है, इससे तिर्यंच आयु के बन्ध के कारण के साथ-साथ अशुभ नामकरण के बन्ध का कारण होता है। जीवन में कभी नहीं करना चाहिए। 

कुछ लोग हैं जो इधर की उधर करते रहते हैं। इससे बचने का उपाय है- पहली बात तो अगर कोई व्यक्ति दूसरे की चुगली आपके पास करें, आप उसमें रस मत लो, उससे सावधान हो जाओ। समझ लो यह आदमी बड़ा डेंजर है, जब दूसरे की चुगली तुम्हारे पास कर रहा है या दूसरे की आलोचना तुम्हारे पास आकर कर रहा है, तो पक्के तौर पर तुम्हारी बुराई सामने वाले के पास जाकर के करेगा ही करेगा, तो ऐसे लोगों की बातों को बल मत दो, उनको सेंसर करो। अगर कुछ कहता भी है, तो उस पर भरोसा मत करो क्योंकि लोग नमक-मिर्च लगाकर के बात को बढ़ा-चढ़ाकर करते हैं, उसमें उनका कोई इंटरेस्ट भी होता है। दूसरी बात, कोई व्यक्ति किसी की बात इस तरह से कहे जिससे मन में संशय होने लगे, तो जिस व्यक्ति के विषय में कहा गया उस व्यक्ति से जा करके पूछ लो कि ‘क्या तुमने ऐसा कहा?’ ‘नहीं कहा’, क्लेरिफिकेशन हो गया फिर कुछ करने की जरूरत नहीं होगी और फिर ऐसे व्यक्ति को हतोत्साहित करने के लिए उस व्यक्ति को सामने बुलाओ- ‘क्यों जी, तुम तो ये कह रहे थे, यह हुआ नहीं, ऐसी बात क्यों कह रहे थे’ और जब सामने आदमी एक्सपोज हो जाएगा, तब दोबारा किसी की चुगली करने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। 

होता यह है कि लोग बड़े कान के कच्चे होते हैं। कान के कच्चे होने का मतलब है- किसी ने कहा ‘कौआ तुम्हारा कान ले गया’, तो कान की तरफ देखने की जगह, कौवे की तरफ भागने लगे। अरे जब कान लगा है, तो लेकर कैसे गया? लेकिन कुछ लोग हैं जो कान की तरफ ध्यान नहीं देते कौवे के पीछे पागल हो जाते हैं। ये कान के कच्चे लोग हैं, तो ऐसे कान के कच्चे मत बनो। किसी भी व्यक्ति की बात को सुनने के बाद उसमें कितने का गुणा करना है, कितने का भाग देना है, कितना प्लस करना है, कितना माइनस लगाना है, यह दिमाग में सेट कर लो। बहुत सारे लोग होते हैं जो उल्टी-सीधी बातें भरते रहते हैं, थोड़ा सा अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करें न तो आप लोग तो हम लोगों को बेच खाओ। बड़ी बुरी हालत है, एक से एक महानुभाव आते हैं पर हम तो बहुत समझते हैं, सुनते सबकी है पर करते अपने हिसाब से है। इसी तरह जो इस तरह की प्रवृत्ति के लोग होते हैं, इधर का उधर, उधर से इधर करने वाले, उनकी बातों को अधिक महत्त्व न दे। अपने विचार और विवेक से काम ले, तो ऐसी प्रवृत्ति से हम भी बच सकेंगे और सामने वाले को भी बचा सकेंगे।

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