मोबाइल के दुरुपयोग से कैसे बचें और बचाएँ?

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शंका

आप हमेशा कहते हैं कि समाज और संगति संस्कारों पर हमेशा भारी पड़ती है और उनका प्रभाव ज़्यादा नजर आता है। आज के अभिभावकों की यह सबसे बड़ी समस्या है कि वे अपने बच्चों को बाहर की कंपनी से तो रोक सकते हैं, उनको मॉनिटर कर सकते हैं, बचा सकते हैं।  लेकिन मोबाइल की कम्पनी उसको बचपन से ही दे जातीहै। क्लास के बच्चे को हाथ में मोबाइल दे दिया जाता है, अनजाने में वह बच्चा मोबाइल का misuse करता है और उसमें गलत चीजें भी स्वीकार लेता है, उस सोसाइटी से उस बच्चे के संस्कार को कैसे बचाया जाए?

समाधान

प्रारम्भ से उसके लिए जागरूकता लानी चाहिये। ‘मोबाइल का उपयोग न करो, उपयोग न करो, उपयोग न करो’ ऐसा कहने से तो हम उनके मन में मोबाइल की प्रति और ज़्यादा झुकाव पैदा करते हैं। उन्हें बतायें कि मोबाइल का उपयोग कहाँ है और कब तक है, कितना है। मोबाइल एक सुविधा है न कि वह हमारे जीवन का अंग। मोबाइल को ईजाद किया गया एक सुविधा की दृष्टि से, लेकिन अब वह लोगों के जीवन का अंग बन गया। वस्तुतः मोबाइल का यूज तब है जब आप मूवमेंट में हो, जब स्टेबल हो तब मोबाइल का क्या यूज़? जागरूकता होनी चाहिये। 

मेरे सम्पर्क में ऐसे अनेक लोग हैं जो मोबाइल यूज़ करते हैं पर स्मार्टफोन यूज़ नहीं करते। आज एक युवक आया कोलकाता से, अजय चूड़ीवाल, युवा है। वो अपने पास नोकिया १०रखता है। कोलकाता के जैन समाज के सुसंपन्न, संभ्रान्त परिवारों में  से एक है, लेकिन nokia१००० के अलावा कुछ नहीं रखता। बोला -‘महाराज, इंटरनेट को मैं ऑफिस से बाहर यूज़ नहीं करता, जितने देर अपने ऑफिस में रहता हूँ, मेरे पास कंप्यूटर होता है, वहीं इंटरनेट है। बाहर आता हूँ ऑफिस को बंद करके आता हूँ, दिन भर एँजॉय करता हूँ। जीवन में बहुत व्यवस्थित रहता हूँ।’ तो यह सोच है। 

मोबाइल एक requirement (आवश्यकता) है और उस रिक्वायरमेंट की पूर्ति हम कर रहे हैं, हमारा उससे काम चलेगा लेकिन आजकल तो बच्चों को स्मार्ट फोन चाहिए। स्मार्ट फोन भी नहीं, एंड्रॉयड नहीं, आई फोन चाहिए। आईफोन में भी एप्पल ८ चाहिए है। यह बहुत विकृत सोच का परिणाम है। ऐसे लोग जीवन भर दुखी होते हैं। हमें बचना चाहिये।

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