शंका
हम लोगों का लक्ष्य तो यही है कि हम लोग विशुद्धि बढ़ायें, लेकिन इस गृहस्थी के जंजाल से हम लोग निकल ही नहीं पा रहे हैं। तो हम कैसे अपनी विशुद्धि बढ़ायें?
समाधान
विशुद्धि बढ़ाने के लिए यदि घर से नहीं निकलोगे तो विरक्ति कैसे बढ़ेगी। विशुद्धि अलग चीज है और विरक्ति अलग चीज है। विशुद्धि का मतलब साता आदि प्रशस्त कर्म के बन्ध योग्य परिणाम और विरक्ति का मतलब है कि संसार को जंजाल मान कर उससे दूर हटने की छटपटाहट। जिस दिन तुम्हारी ये छटपटाहट बढ़ जायेगी। अपने आप घर छूट जायेगा। अभी क्या है? आपका घर छोड़ने का मन होता है, लेकिन आप बगल में देखते हो तो आपको लगता है कि कुछ जिम्मेदारी शेष है। तो वह जिम्मेदारियाँ अपनी और खींच लेती है। ये विरक्ति जब और प्रगाढ़ होंगी तो सब अपने आप हो जायेगा।
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