पिता संपत्ति का बटवारा कैसे करें?

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शंका

आज समस्या है कि पिता की सम्पत्ति का सही बंटवारा नहीं होने के कारण भाई भाई का दुश्मन बन जाता है। दुश्मनी इतनी बढ़ जाती है कि भाई भाई एक दूसरे का चेहरा भी देखना पसन्द नहीं करते। मैं यह पूछना चाहती हूँ कि क्या इसका दोष पिता को लगेगा? ऐसी व्यवस्था में पिता का क्या रोल होना चाहिए?

समाधान

यह बड़ी मुश्किल है। प्राय: सम्पत्ति के पीछे भाई भाई से लड़ता है। ऐसी लड़ाई प्राय: उनके यहाँ ज़्यादा देखने को मिलती है जिनके पास अपार सम्पत्ति है, जिनके पास पैसा कम होता है उनमें ऐसी लड़ाई सुनने की बात कम आती है। इसमें मैं सन्तान को तो दोषी मानता ही हूँ और सन्तान से ज़्यादा दोषी माँ-बाप को मानता हूँ। माँ-बाप को अपनी सम्पत्ति को इस तरीके से विभाजित करना चाहिए कि उनके जाने के बाद झगड़े का सवाल ही न हो और अपने बच्चों के लिए सम्पत्ति देने के साथ-साथ यदि संस्कृति सौंपी हो तो बच्चे आपस में झगड़े ही नहीं। जो माँ-बाप अपने बच्चों को प्यार -मोहब्बत की बात सिखाते हैं, बन्धुत्त्व के महत्त्व को बताते हैं उनकी सन्तान कभी आपस में बिछड़ते नहीं। 

मैं दो उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ। एक वो जिस पिता ने अपने बच्चों को शुरू से खूब अच्छे संस्कार दिए और संस्कार देने के बाद, सात बेटे थे, एक बेटा कुँवारा था, सातों को अलग-अलग सम्पत्ति बाँट दी। अपनी सम्पत्ति रखी और अपनी सम्पत्ति रखने के साथ अपनी पत्नी की सम्पत्ति के नाम की एक वसीयत कर दी और उस वसीयत में उनने तय कर दिया कि हमारे बाद हमारे बच्चों को क्या करना है? उस सम्पत्ति में दो बेटों का कुछ शेयर भी था। आपको सुनकर आश्चर्य होगा, पिता की मृत्यु हुई, ६ महीने बाद माँ की भी मृत्यु हो गई, सब भाई आपस में बैठे और कहा कि पिता की इच्छा के अनुसार जो वसीयत है उसके अनुरूप काम करना चाहिए और हम लोगों को पिता ने जो दिया, वह कम नहीं दिया। बड़े भैया आपके लिए पिता ने जो रखा है एक मकान है यह आपका है, आपको स्वीकार करना चाहिए। आप सुनकर के आश्चर्य करेंगे, बड़े भाई ने कहा- “नहीं, मेरे पास रहने का मकान पर्याप्त है। छोटे भाई इन दिनों तंगी में हैं, यह मकान मैं छोटे भाई को दूँगा, यह पिताजी का गौरव है”- यह संस्कार है। पिता ने इतनी समझदारी की थी कि बच्चों को अलग करके भी एक दूसरे के साथ मर मिटने के संस्कार दिए थे। अपने सामने सामने सातों बच्चों को बाँट दिया, कुंवारे लड़के का हक भी उसको दे दिया और बाद की वसीयत की और वसीयत के बाद अपनी सन्तान को ऐसी नसीहत दी थी कि उदारता उनके अन्दर आए। 

एक ऐसे परिवार को मैं जानता हूँ जो वर्तमान में आपस में लड़ मर रहे हैं, अरबपति परिवार है, चार भाइयों का परिवार, तीन भाई एक तरफ, एक भाई एक तरफ, बाप मर गया, माँ मर गई समझाते-समझाते, लेकिन आज थोड़ी सी सम्पत्ति के पीछे लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं। केस मुकदमा भी चल रहा है, मैं तो समझता हूँ अगर उनके पिता ऐसे सम्पत्ति नहीं छोड़े होते या सन्तानों ने ऐसी सम्पत्ति न जोड़ी होती तो शायद यह दुर्दिन नहीं देखने को मिलते। 

ये चीजें समझना चाहिए और उस पिता के जीते जी ही बेटे झगड़ने लगे थे। एक दिन बड़ी मायूसी के साथ उसने कहा था कि “महाराज मैंने सम्पत्ति जोड़ने के साथ-साथ यदि अपने बच्चों के संस्कारों का ख्याल रखा होता तो आज मेरे बच्चे मेरे सामने मेरा ही विरोध कभी नहीं करते, मुझे ये रूप देखने को नहीं मिलता।” मैं तो कहना चाहूँगा सब लोगों से कि अपनी सन्तान के लिए केवल पैसा मत दो, पैसे से ज़्यादा मूल्यवान संस्कार है, संस्कार देंगे तो ऐसी स्थिति कभी नहीं बनेगी।

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