सच्ची मैत्री कैसी हो – व्यावहारिक या आध्यात्मिक?

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शंका

रिश्तों के उपवन में प्रशंसा की खाद के बिना मैत्री के फूल कैसे खिलें और व्यवहार मैत्री और परमार्थ मैत्री में क्या अन्तर है?

समाधान

खाद के बिना न फूल खिलें है न खिलेंगे। जहाँ कही भी फूल खिलते हैं तो खाद से ही खिलते हैं लेकिन इस बात को ध्यान में रखना है कि खाद सही खाद हो। कई बार लोग खाद के चक्कर में कुछ और डाल देते हैं तो वह पेड़ बढ़ने की जगह जल जाता है। प्रशंसा की खाद तो बहुत अच्छी चीज है पर झूठी प्रशंसा की खाद बहुत ख़राब है। इसलिए झूठी प्रशंसा मत करना बल्कि सही प्रशंसा करना तभी मैत्री के फूल खिलेंगे। चापलूस लोग आज मौके के अनुरूप बात करते हैं लेकिन उसके बाद उनका अंजाम अच्छा नहीं होता।

व्यवहारिक मैत्री का मतलब है किसी के दुःख में साथी होना। आध्यात्मिक मैत्री का अर्थ है किसी के अन्दर दु:ख न हो ऐसी अभिलाषा रखना। हम दु:ख होने के बाद सहभागी बनें यह बहुत नीचे की बात है। हमेशा यह भावना भायें कि कभी किसी को दु:ख हो ही नहीं यह वास्तविक मैत्री है। 

रामायण का एक प्रसंग बताता हूँ- रामायण पूरा होने के बाद एक आभार प्रदर्शन का कार्यक्रम चल रहा था। जितने भी बड़े-बड़े योद्धा थे, वे अपने युद्ध और पराक्रम की गौरव गाथा गा रहे थे तो अन्त में रामचंद्र जी ने सबकी तरफ आभार व्यक्त करते हुए सबके गौरव की गाथा सुनाई और हनुमान की बात करते हुए कहा- क्या बताऊँ, हनुमान ने मुझ पर जो उपकार किया उस उपकार को मैं भूल नहीं सकता। अगर हनुमान नहीं होते तो सीता की शोध नहीं होती और तब लंका पर विजय नहीं होती और हमारा सब कुछ गड़बड़ हो जाता। हनुमान ने हम पर बहुत बड़ा उपकार किया और हम हमेशा उसके इस उपकार के ऋणी बने रहना चाहते हैं। हम नहीं चाहते कि हनुमान के ऋण को हम कभी पूरा करें। तो सब सकते में आ गए, क्या बात है क्या ये कृतघ्नता नहीं होगी? “आप उनके ऋण से उऋण होना क्यों नहीं चाहते?” उन्होंने कहा- हनुमान के ऋण से उऋण होना तभी सम्भव होगा जब हनुमान जैसे की स्त्री का कोई हरण करे और मैं उसको खोजने में सहायक बनूँ। सच्ची मैत्री वह होती है जो किसी पर के दु:ख की उत्पत्ति ही न हो ऐसी अभिलाषा रखे।

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