डायबिटीज आदि के मरीज धर्म साधना कैसे करें?

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शंका

डायबिटीज़ आदि अनेक रोग व्यक्ति को हो जाते हैं। वह समझता है कि मानव जीवन बड़ा दुर्लभ है, ना जाने कब मिले? तो उस बीमारी में भी वह अपना आत्म कल्याण करना चाहता है। किंतु जो खाने-पीने संबंधी व्रत-नियम डायबिटीज़ आदि में पालन नहीं कर पाते तो ऐसे प्राणियों को आत्म कल्याण का मार्ग कैसे मिले?

समाधान

धर्म की आराधना अपने शरीर, स्वास्थ्य और सत्त्व के अनुसार करना चाहिए। अगर किसी के जीवन में गंभीर बीमारी है तो निश्चित रूप से वह व्रत उपवास करने में सक्षम नहीं है। इसलिए पहले तो मैं कहता हूँ कि बिमारीयाँ घेरे उससे पहले व्रत उपवास करने का अभ्यास कर लो नहीं तो बाद में करने लायक नहीं बचोगे। यदि करते रहोगे तो इस प्रकार की बिमारीयाँ नहीं होगी। लेकिन जिनको यह बिमारीयाँ हैं वे हताश ना हों। हमारा धर्म केवल खाना पीना छोड़ने का नाम नहीं है। हम अपनी मनोवृत्ति को अंतर्मुखी बनाएं। आध्यात्मिकता से अपने आप को जोड़ें, भेद-ज्ञान की भावना को दृढ़ करें। शारीरिक कष्टों को जितना बन सके सहन करने का अभ्यास करें, तो आप काफी कुछ तरीके से अपना धर्म ध्यान कर सकते हैं। आप व्रत उपवास नहीं कर सकते, कोई चिंता नहीं। भगवान की पूजा आराधना तो कर सकते हैं, सामयिक जाप तो कर सकते हैं, और सामायिक, जाप, पूजा आराधना के बल पर आप काफी कुछ अच्छा धर्म ध्यान कर सकते हैं। इसलिए उस तरह का धर्म ध्यान करने का प्रयास करना चाहिए। रहा सवाल जो पूरी तरह व्रत उपवास नहीं कर सकते उनका। तो उनसे भी मैं कहता हूँ जिनको डायबिटीज़ है वह 24 घंटे थोड़ी खाते हैं? ऐसा करो कि भोजन करो और तुरंत त्याग करो कि “अब 3 घंटे का त्याग, 2 घंटे का त्याग, 1 घंटे का त्याग”। रात में सोते हो तो नींद में थोड़े ही खाते हो? जब जगते हो तभी खाते हो। “महाराज, सपने में भी खा लेते है।” उनकी मैं क्या कहानी कहूं? तुम एकदम अस्वस्थ हो और सोने लगो और तब अगर तुम खा नहीं पा रहे हो तो कोई बात नहीं। उस समय यह सोचो कि “जितनी देर मैं सो रहा हूँ उतने देर का त्याग”। “नियम तो होगा, फायदा क्या होगा महाराज?” मरोगे तो त्याग से मरोगे, सत्गति के पात्र बनोगे। जितना बन सके अपनी भूमिका के अनुरूप त्याग को आदर्श मानते हुए त्याग के क्षेत्र में अग्रसर होते रहना चाहिए। जीवन का पथ इसी से प्रशस्त होगा। अनासक्ति और संयम हमारे धर्म का मूल तत्व है उसे यथासंभव पाल कर अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहिए।

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