क्षमा तो करें पर कब तक?

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शंका

क्षमा क्या है? क्षमा अपने मन से मलिनता को समाप्त कर देती है, लेकिन सामने वाला उसको जरूरत से ज़्यादा झुकाने की कोशिश करता है। ऐसे में कब तक झुकना चाहिए, झुकते रहना चाहिए या रुक जाना चाहिए?

समाधान

सबसे बड़ी बात, जब हमारे मन में क्षमा का भाव आता है न, तो कोई कंडीशन नहीं रहती। यह कंडीशन का आना ही हमारे अन्दर के ego को प्रकट कर रहा है- ‘आखिर कब तक और हम ही क्यों?’ जब तक इस तत्त्व को अपने अन्दर से बाहर नहीं करोगे, सच्ची क्षमा का भाव नहीं आएगा। 

पश्चिम में एक प्रयोग हो रहा है, भारत की चीज है, उसका नये तरीके से प्रयोग कर रहे हैं और हमारे भारत की एक विचित्रता है कि जब हमारी हवा पश्चिम से घूम के आती है, तो प्यारी लगने लगती है। वहाँ एक प्रक्रिया develop की जा रही – divine forgiveness (दिव्य क्षमा), उसमें डिवाइन लगा दिया गया है। वे कह रहे हैं ‘कोई भी बात है मन से क्षमा करो, ह्रदय से क्षमा करो, एकतरफा क्षमा माँगो और एकतरफा क्षमा करो।’ इससे क्या होगा? लॉ ऑफ अट्रैक्शन के सिद्धान्त के हिसाब से बताया जाता है कि जब आप किसी से क्षमा माँगोगे या किसी को क्षमा करोगे- ‘मैं उसे क्षमा करता हूँ, मैं उनसे क्षमा माँगता हूँ’, आपके हृदय की पुकार होगी, वैसी भाव तरंग होगी तो सामने वाले तक भाव संप्रेषित होंगे। उस संप्रेषण का इफेक्ट ये होगा कि उस व्यक्ति की भावधारा बदलेगी, आज नहीं तो कल बदलेगी; और जिस दिन बदलेगी, उस दिन आपका ये बैर का जो सिलसिला है वहीं थम जाएगा, रुक जाएगा, आगे नहीं चलेगा। 

दूसरी बात ऐसा करने से आपके मन का बोझ हल्का होगा, आप बुराइयों और विकृतियों से बचेंगे। इस क्षमा को बहुत व्यापक रूप में बताया गया। जिनसे मेरी उलझन हुई है, जिनसे मेरा बैर है, मनमुटाव है, केवल उनसे ही क्षमा नहीं; अपने दुष्कृत्यों के लिए भी भगवान से क्षमा माँगो। यह एक प्रकार का प्रतिक्रमण है आत्म शोधन का, आत्म जागरूकता के साथ यदि मनुष्य इस प्रकार के क्षमा भाव को अंगीकार करे तो उसके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव घटित हो सकता है। हम लोग तो रोज यह प्रैक्टिस करते हैं। हमारा प्रतिक्रमण है क्या? सबको क्षमा सबसे क्षमा, इसी का नाम प्रतिक्रमण है, ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ में क्षमा है लेकिन विडंबना है। लोग पाठ का प्रतिक्रमण करते हैं, प्रतिक्रमण का पाठ नहीं कर पाते। जीवन में हम प्रतिक्रमण का सच्चा पाठ करें, ह्रदय से सबको क्षमा करें। 

तुम्हारे अन्दर से ऐसी पुकार तो उत्पन्न हो, ‘अरे! हम तो क्षमा बाद में माँगेंगे, पहले पूछो वे क्षमा माँगेंगे तो कैसे माँगेंगे? अकेले में माँगना है कि सबके सामने माँगना है, लिखित क्षमा होगी कि मौखिक क्षमा होगी।’ ५० कंडीशन पहले लगा दीं, तुम्हारे यहाँ क्षमा क्या खाक होगी? क्षमा के भाव ही नहीं। ध्यान रखना क्षमा वही करता है जो मनुष्य समर्थ होता है, जिसका हृदय विशाल होता है और अहंकार से जो मुक्त होता है।

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