शरीर और आत्मा के प्रदेश का सम्बन्ध कब तक?

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शंका

जीव का जो शरीर होता है वह उसका स्कंध होता है; और पूरे स्कंध में आत्मप्रदेश फैले हुए रहते हैं। लेकिन कभी ऐसा देखा जाता है कि जैसे शरीर का कोई अंग विच्छेद हो जाता है, तो वह अलग तड़पता रहता है ऐसा मकोड़ों में, छिपकली की पूंछ में ऐसा अक्सर देखा जाता है। तो वो प्रदेश क्या उस शरीर में ही वापस आ जाते हैं या फिर कहाँ जाते हैं?

समाधान

सबसे पहले तो इनके सम्मान में आप लोग एक बार ताली बजा दीजिए। ये गोविंद जी टाक हैं। जाति से जैन नहीं है लेकिन आप इनके प्रश्न से अंदाजा लगा सकते हैं कि इन्हें जैन धर्म का कितना गहरा ज्ञान है, कितना अच्छा स्वाध्याय है! पिछले ८ महीने से निरन्तर हमारे सम्पर्क में हैं। और विशुद्धतया जैन धर्म का न केवल पालन करते हैं अपितु अध्ययन भी करते हैं। आपकी भावना के लिए साधुवाद। 

आपने जो पूछा है कि हमारे शरीर के अंगच्छेदन के बाद एक दूसरे का सम्पर्क कैसे होता है? तो शरीर पौदगलिक है, स्कंध है, आत्मा है और आत्मा के प्रदेश हमारे शरीर के एक-एक प्रदेशों में बिधे हुए हैं- जैसे दूध में पानी। अब रहा किसी अंग का विच्छेद हुआ जैसे खासकर छिपकली को अपन रोज़ देखते हैं। अंग के विच्छेद होते ही दो भाग में बंटे आत्मा के प्रदेश एक निश्चित समय अवधि तक संकुचित नहीं होते। तो बेतार का तार जुड़ा हुआ रहता है बीच में गैप है लेकिन दोनों तरफ से जुड़ाव है और इधर का उधर का दोनों चल रहा है। तो जब तक आत्म प्रदेश संकुचित नहीं होते तो उस जगह भी प्राण हैं, इधर भी प्राण हैं। फिर एक समय के बाद आत्म प्रदेश संकुचित हो जाते हैं, तो एक हिस्सा डेड बन जाता है, दूसरा रहता है। तो इसके पीछे यही कारण है, आत्म प्रदेश का संकोच और विस्तार। आत्मा में एक गुणधर्म है, तो शरीर का अंग कटने के बाद भी जब तक आत्म प्रदेश संकुचित नहीं हुए तब तक ऐसा होता है।

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