हिंदू धर्म और जैन धर्म में क्या अन्तर है?

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शंका

हिंदू धर्म और जैन धर्म में क्या अन्तर है?

समाधान

बहुत अन्तर है। जैन धर्म एक ऐसा धर्म है जो प्रत्येक प्राणी के भीतर परमात्मा होने की बात करता है और ये कहता है कि हर आत्मा परमात्मा बन सकती है। ‘अप्पा सो परमप्पा’, यही जैन दर्शन का मूलभूत सिद्धान्त है। वैदिक परम्परा में ज्यादातर जितने भी दर्शन हैं वे सब परमात्मा के अंश के रूप में सारे संसार को देखते हैं। जैन धर्म ऐसा नहीं मानता, जैन धर्म आत्मा को परमात्मा होने की बात करता है। 

दूसरी बात जैन धर्म अहिंसा मूलक आचरण की बात करता है; अहिंसा का जितना सूक्ष्म रीति से अनुपालन जैन धर्म में बताया गया उतना अन्यत्र नहीं दिखता। 

और तीसरी बात जैन धर्म में वीतरागता की ही उपासना की जाती है। राग को संसार का बन्धन का कारण माना जाता है और वीतरागता को ही संसार से पार उतरने का साधन माना गया है। इसलिए वीतरागता को मूल आदर्श के रूप में स्वीकारा गया है। अहिंसा,वीतरागता तथा आत्मा ही परमात्मा है- ये तीन ऐसी बातें हैं। अनेकांत, स्यादवाद की बातें मैं अभी विस्तृत रूप से नहीं कर रहा हूँ लेकिन ये तीन ऐसी बातें हैं जो स्पष्टतया अन्य भारतीय धर्मों से जैन धर्म को एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती हैं।

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