जैनागमानुसार कर्म सिद्धांत की कैसी विवेचना की गई है?

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शंका

जैनागमानुसार कर्म सिद्धांत की कैसी विवेचना की गई है?

समाधान

जैन कर्म सिद्धान्त में इसकी विशद विवेचना है और बहुत अच्छी विवेचना है। जैन कर्म सिद्धान्त में लिखा है – हमारे कुछ कर्म ऐसे है जिनमें हम कोई फेरफार नहीं कर सकते है। उन्हें निधत्ति और निकाचित के नाम से जाना जाता है। पर ये बहुत थोड़े हैं। ज्यादातर कर्मों में हम बहुत बड़ा परिवर्तन कर सकते हैं। उनमेंं संक्रमण कर सकते हैं, उनका उत्कर्षण कर सकते हैं, उनका अपकर्षण कर सकते हैं, असमय में उनकी उद्दीर्णा कर सकते है, उसकी शक्ति को मंद करके उसे उपशान्त कर सकते हैं। ये सारी गुंजाईश है।

 तो जैन कर्म सिद्धान्त न तो इतना नियतिवादी है, कि उसके बिना आप हिल न सको और न इतना स्वच्छन्तावादी है, कि आप चाहे जो कर सको। दोनों के बीच का समन्वय है, जो हमसे कर्मों के बन्धन की बात भी करता है, तो मुक्ति का रास्ता भी दिखाता है।

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